________________
हर्गतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (६५) तिक्तत्वात्कफजित्तेन गुग्गुलः सर्वदोषहा। स नवो बृंहणो वृष्यः पुराणस्त्वतिलेखनः॥४२॥ स्निग्धः कांचनसंकाशः पकजम्बूफलोपमः । नूतनो गुग्गुलुः प्रोक्तःसुगन्धिर्यस्तु पिच्छिलः॥४३॥ शुष्को दुर्गंधकश्चैव त्यक्तप्रकृतिवर्णकः । पुराणः स तु विज्ञेयो गुग्गुलुर्वीर्य्यवर्जितः ॥४४॥ • अम्लं तीक्ष्णमजीण च व्यवायं भ्रममातपम् ।
मद्यं रोषं त्यजेत्सम्यग्गुणार्थी पुरसेवकः ॥ ४५ ॥ गुग्गुल, देवधूप, जटायु, कौशिक, पुर, कुम्भ, उल्लूखलक, महिषाक्ष और पलंकषा यह गुग्गुलके संस्कृत नाम हैं। उल्लूखलक शन्द नपुंसक लिंगमें ही होता है । गुग्गुलको हिन्दी में गुग्गुल, फारसीमें वोराजदान
और अंग्रेजीमें Indian Dellum कहते हैं । __ महिषाक्ष, महानील, कुमुद, पद्म तथा हिरण्य यह गुग्गुळके पांच भेद हैं। मृगके नेत्रके समान वर्णवाला महिषाक्ष गुग्गुल होता है, जो गुग्गुल अपने नामके अनुसार अत्यंत नीला हो उसे महानीन कहते हैं। जिस गुग्गुलका कुमुद समान वर्ण हो उसे कुमुद कहते हैं। जिस गुग्गुलकी माणिक्यके समान कान्ति हो उसे पद्म कहते हैं तथा जिसका वर्ण स्वर्णके समान हो वह हिरण्यगुग्गुल जानना । यह पांचोंके लक्षण हैं। महिषाक्ष और महानील हाथियोंके लिये हितकारी हैं, पद्म और कुमुद यह दोनों गुग्गुल अश्वोंके लिये लाभदायक हैं और मनुष्योंके लिये विशेष करके हिरण्य गुग्गुल हितकर है। कुछ मनुष्योंका मत है कि हिरण्याक्षगुग्गुल मनुष्योंको भी दिया जा सकता है । गुग्गुल-विशद, तिक्त, उष्णवीर्य, पित्तकारक, दस्तावर, कसैना, कटु, पाकमें कटु, रूक्ष, हलका टूटे हुएको जोडनेवाला, वीर्यवर्धक सूक्ष्म,स्वरकारक अायुको बढानेवाला दीपन, चिकना, बलकारक तथा कफ, वात व्रए, अपची, मेद, मेह, पथरी,
Aho! Shrutgyanam