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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी . ।
बात, क्लेद, कुष्ठ, आमवात, पिण्डक, ग्रन्थि, शोफ बवासीर, गंडमाळा तथा कृमियोंको हरता है । गुग्गुल-मधुर होनेसे वात को, कसैला होने से पित्तको तथा तिक्त होने से कफको नष्ट करता है, इस प्रकार गुग्गुल त्रिदोषनाशक है। नवीन गुग्गुल पुष्टिकारक तथा वीर्यको बढानेवाला है, पुराना गुग्गुल अत्यन्त लेखन है । जो गुग्गुल स्निग्ध हो, स्वर्णके समान हो, पके हुए अम्बु फलके सदृश हो तथा सुगन्धित और पिच्छिल हो वह नया (नवीन) होता है । जो गूगल सूखा दुर्गन्धियुक्त तथा जिसने अपना स्वाभाविक वर्ण छोड दिया हो, वह पुराना होता है तथा वह शक्तिरहित होता है !
लाभकी इच्छा करनेवाले गूगलके खानेवालेको प्रम्ल, तीक्ष्ण तथा अजीर्ण करनेवाले पदार्थ तथा व्यवाय, भ्रम और गरमी, मद्य तथा क्रोध इनका त्याग कर देना चाहिये ।। ३२-४५ ॥
श्रीवासः ।
श्रीवासः सरलस्रावः श्रीवेष्टो यक्षधूपकः । श्रीवासो मधुरस्तिक्तः स्निग्धोष्णस्तुवरःसरः ॥४६॥ पित्तलो वातमूत्रक्षिस्वररोगक्षयापहः । रक्षोघ्नः स्वेददौर्गन्ध्ययू काकण्डूत्रणप्रणुत् ॥ ४७ ॥
श्रीवास, सरलस्राव, श्रीवेष्ट, यक्षधूपक यह श्रीवास के संस्कृत नाम हैं । हिन्दी में इसे गन्धपिरोजा तथा सरलका गोन्द, फारसी में सन्दरुष कादवा और अंग्रेजीमें Gumcopal कहते हैं।
श्रीवास - मधुर, तिक्त, स्निग्ध, उष्ण, कसैला, दस्तावर, पित्तवर्धक और वात, शिरोरोग, अक्षिरोग, स्वर रोग, क्षय, राक्षरूकी पीडा, स्वेद, दुर्गउता, थूका (जूं), खुजली तथा व्रया इनको नष्ट करता है ॥ ४६ ॥ ४७ ॥
रालः ।
रालस्तु शालनिर्यासः तथा सर्जरसः स्मृतः । देवधूपो यक्षधूपस्तथा सर्वरसश्च सः ॥ ४८ ॥
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