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साधान्यके जलोंसे और आजिघ्रकलशम्-इस मन्त्रसे कलशके जलासे ॥ २१७ ॥ ओषधयः-इस मन्त्रको पढकर अक्षतोंसे यवोऽसि इस मन्त्रको पढ़कर जवके जलोंसे तिलोसि०-इस मन्त्रको पढ़कर तिलांसे, पंचनद्यः -इस मन्त्रको पढकर नदीके जलोंसे ॥ २१८ ॥ इमं मे गंगेइस मन्त्रको पढकर तीर्थके जलोंसे, नमोऽस्तु रुद्रेभ्यः०-इस मन्त्रको पढकर नग (पर्वत) और हस्ति शालाकी मिट्टीसे स्नान करावे ॥ २१९ ॥ स्योनापृथिवी-इस मन्त्रको पढकर हलकी मिट्टी सहतमिली मिट्टीसे और हिरण्यगर्भ०-इस मन्त्रको पढ़कर सुवर्णके जलोंसे स्नान करावे | ओषधय इत्यक्षतैश्च यवोऽसीति यवोदकैः । तिलोऽसीति तिलैः पंचनद्येति च नदीजलैः ॥२१८॥ इमं मे गङ्गेति च तथा तीर्थानामुदकेन च । नमोऽस्तु रुद्रेभ्यो मृदा नगदन्तिसमुद्भवात् ॥२१९ ॥ स्योना पृथिवी च मृदा सीतया मधुमिश्रया। हिरण्यगर्भ इति वा सुवर्णोदकसंभवैः ॥ २२० ॥ रूपेणेति रौप्येण पदस्यायेति वस्त्रजः। संस्राप्य तीर्थपयसा ततः शुद्धोदकेन च ॥ २२१ ॥ सम्माय॑ शुभ्रवस्त्रेण गन्धेनालिप्य सर्वतः । ब्रह्मादीन् पूजयेत्तत्र नाममन्त्रेण वा तथा ॥ २२२ ॥ उपचारैः पोड शभिर्मूलमध्यशिरःस्वपि । सपनं चाभिषेकन्तु वेदमन्त्रैश्च कारयेत् ॥२२३॥ आब्रह्मन्निति नन्दायां भद्रं कर्णेति वै तथा । जात वेदसेति तथा यमाय त्वेति मन्त्रकैः ॥ २२४ ॥ ॥ २२. ॥ रूपेण-इस मन्त्रको पढकर चाँदीके जलासे, पदस्याय--इस मन्त्रको पढ़कर वस्त्रके जलोंसे और तीर्थके जलोंसे स्नान कराकर फिर शुद्ध जलोंसे स्नान करावे ॥ २२१ ॥ फिर सफेद वस्त्रसे संमार्जन करके और सब अंगोंमें गन्धका लेपन करके वास्तुमण्डलमें
नाममंत्रांस ब्रह्माआदिका पूजन करे ॥ २२२ ॥ वह पूजन षोडश उपचारोंसे करे और मूल मध्य शिरके ऊपर स्नान और अभिषेक आवेदके मन्त्रोंसे करावे ॥ २२३ ॥ आब्रह्मन्० भद्रंकणेभिः इन मन्त्रोंको और जातवेदसे० यमाय त्वा. इन मन्त्रोंको पढकर नंदा भद्रा