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________________ वि. प्र. ! ॥ ४८ ॥ कलशोंसे स्नान करावें उनके नाम श्रवण करो, पद्म महापद्म शंख विजय || २११ ॥ और पांचवां सर्वतोभद्र होता है मंत्रसे उनका आवाहन करे अग्निर्मूद्ध इस मंत्र को पढकर मिट्टीसे यज्ञायज्ञ इस मंत्रको पढ़कर जलोंसे ॥ २१२ ॥ अश्वत्थ इस मंत्रसे पंच कषायोंसे और 1 पत्तोंके जलसे गायत्रीको पढकर गोमूत्रसे गन्धद्वारां इस मंत्रको पढकर गोमयसे ॥ २१३ || आप्यायस्व इस मन्त्रको पढकर दुग्धसे और दधिक्राव्णः इस मन्त्रको पढकर दधिसे, घृतंमि० इस मन्त्रको पढकर घृतसे, मधुवाता इस मन्त्रको पढकर मधुसे ॥ २१४ ॥ पञ्चमं सर्वतोभद्रो मन्त्रेणावाहयेत्तु तम् ॥ अनिर्मूर्द्धेति च मृदा यज्ञायज्ञेति वारुणैः ॥ २१२ ॥ अश्वत्थेति कषायेण पल्लवेन जलेन च । गायत्र्या च गवां मूत्रैर्गन्धद्वारेति गोमयैः ॥ २१३ ॥ आप्यायस्वेति क्षीरेण दधिक्राव्णेति वै दधि । घृतवर्तीति घृतेन च मधुवाति वै मधु ॥ २१४॥ पयः पृथिव्यामिति च पञ्चगव्येन संस्स्रपेत् । देवस्यत्वेति च कुशैः काण्डात् काण्डाच्च दुर्वया ॥ २१५ ॥ गन्धद्वारेति गन्धेन पञ्चगव्येन वै तथा । या ओषधीरोषधीभियाः फलिनीति फलोदकैः ॥ २१६ ॥ नमस्तेति वृष शृङ्गमृदा धान्यमसीति च । धान्यादीचित्रमिति च कलशेन तथैव च ॥ २१७ ॥ पयः पृथिव्यां इस मन्त्रको पढ़कर पंचगव्यसे, देवस्यत्वा इस मन्त्रको पढकर कुशाओंसे, काण्डात्काण्डात् इस मन्त्रको पढ़कर दूबसे ॥ २१५ ॥ गन्धद्वारा इस मन्त्रको पढ़कर गंधसे और पंचगव्यसे और या ओषधीः इस मन्त्रसे औषधियोंसे और याः फलिनी इस मन्त्रको पढकर फलके जलोंसे ॥ २१६ ॥ नमस्ते इस मन्त्रको पढकर बैलके सींग की मिट्टीसे और धान्यमसि० - इस मन्त्रको पढ़कर • अग्निर्मूर्धा इत्यादिमन्वाः स्वस्तिपुण्याहप्रयोगेषु प्रसिद्धाः । भा. टी. अ. ५ ॥ ४८ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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