SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ. वि. प्र. आदि शब्द करे तो वास्तुके देहमें उत्पन्न हुए अस्थिका शल्यको कहे ॥ १९७ ॥ कुब्ज वामन भिक्षु वैद्य रोगी सूत्र रखनेके समयमें इनके दर्श IMIनको भी लक्ष्मीका अभिलाषी मनुष्य त्यागकरे ॥ १९८ ॥ हुलहुल शब्दोंके सुननेपर, मेघके गर्जनेपर, गर्जतेहुए सिंहोंका जो शब्द है ये सूत्र.. रखनेके समयमें होंय तो धनका दाता होता है ॥ १९९ ॥ सूत्रके फैलाने के समयमें यदि जलतीहुई अग्नि दीखे अथवा घोटक ( घोडे) पर चढाहुआ पुरुष दीखे तो निष्कंटक राज्य होता है ॥ २०० ॥ शंख और तूर्य आदिकोंका शब्द होय तो गृह वस्तुओंसे विपुल रहता है. कुब्जं वामनकं भिक्षु वैद्य रोगातुरानपि । दर्शनं सूत्रकाले तु वर्जयेच्छ्यिमिच्छता ॥ १९८ ॥ श्रुतौ हुलहुलानां च मेघानां गजितेन च । गर्जतामपि सिंहानां स्वनितं धनदं भवेत् ॥ १९९ ॥ सूत्रे प्रसार्यमाणे तु दीप्तोऽग्नियदि दृश्यते । पुरुषो घोटका रूढो भवेद्राज्यमकण्टकम् ॥२०॥ शंखतूर्यादिनिर्घोषे वस्तुभिर्विपुलं गृहम् । योषितां कन्यकानां च क्रीडनं वित्ताईनम् ॥२०१॥ प्रारम्भे च शुभा गेहगोपने मृत्युरोगदा । स्तम्भाधारोपणे मध्या प्रवेशे वृष्टिरुत्तमा ॥ २०२ ॥ दारूणां छेदने चै दुःखशोकामयप्रदा । परीक्षासमये चैव न तु सौख्यप्रदा स्मृता ॥२०३॥ स्त्री और कन्याओंकी जो क्रीडा है वह सूत्र रखनेके समयमें होय तो धनकी वृद्धि होती है ॥ २०१ ॥ ये गृहके प्रारंभमें शुभ हैं और गृहके के छावनेमें मृत्यु और रोगको देती है. स्तंभ आदिके रखनेमें मध्यम और प्रवेशके समयमें होय तो उत्तम वृष्टि होती है ॥२०२ ॥ काष्ठके छेदनमें दुःख शोक रोगको देती है और परीक्षाके समयमेंभी सुखदायी नहीं कही है ॥ २०३ ।।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy