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________________ भली प्रकार साधन किये हुए घरके मध्य में दिशाका साधन करै अर्थात् शिलास्थापनके देशका निश्चय करे, ईशान आदि दिशाओंके क्रमसे सुवर्णके कुदाल ( खुदाला ) से ॥ १८९ - १९१ ॥ कोणभागमें और विशेषकर मध्यभागमें खोदकर नाभिपर्यन्त गर्नमें शिलाका स्थापन शुभ है ॥ १९२ ॥ शिलास्थापन समय में सूत्रका छेद हो जाय तो मृत्यु और कीलका अधोमुख होजाय तो रोग, स्कंध से गिरे तो शिरका रोग, हाथसे गिरजाय तो गृहके स्वामीका नाश होता है ॥ १९३ ॥ यदि गृहके स्वामी और स्थपतिको स्मरणका लोप होजाय समानीय शिलां तत्र सूत्रधारो गुणान्वितः ॥ १९०॥ तत्र दिकूलाधनं कुर्याद्गृहमध्ये सुसाधित । ईशानादिक्रमेणैव स्वर्णकुदाल केन तु ॥ १९१ ॥ खनित्वा कोणभागे तु मध्ये चैव विशेषतः । नाभिमात्रे तथा गर्ते शिलानां स्थापनं शुभम् ॥ १९२ ॥ सूत्र च्छेदे भवेन्मृत्युः कीले चार्वाङ्मुखे गदः । स्कंधाच्च्युते शिरोरोगः कराद्गृहपतेः क्षयः ॥ १९३ ॥ गृहेशस्थपतीनां च स्मृति लोपोse मृत्युः । भने कीर्तिवधः कुम्भे कुम्भस्योत्सर्गवर्जिते ॥ १९४ ॥ मूत्रे प्रसार्यमाणे तु गर्दभो यदि रौति चेत् । तत्रास्थि शल्यं जानीयाच्छुशृगाला दिलंघितम् ॥ १९५ ॥ रविदीप्ता दिशा यातु तत्र चेत्परुषो वः । संस्पृष्टाङ्गसमाने च तस्मिञ्छत्यं विनिर्दिशेत् ॥ १९६ ॥ शिलाविन्यास काले तु वाशन्ते द्विरदादयः । तस्मिंस्तदेह संभूतमस्थिशल्यं विनिर्दिशेत् ॥ १९७ ॥ तो मृत्युको देता है. यदि विसर्जनसे पहिले घटका भंग होजाय तो कुलकी कीर्तिका नाश होता है ॥ १९४ ॥ यदि सूत्रके फैलाने समय में गर्दभ शब्द करें तो उस स्थानमें शल्यको जाने. कुत्ता श्रृंगाल सूत्रको लंघ जाय तोभी दुःखको जाने ।। १९५ ॥ सूर्यसे प्रकाशित जो दिशा है उसमें कठोर शब्द होय तो जिस अंगसे सूत्रका स्पर्श होय उसके समान अंगमें शल्यको कड़े ॥ १९६ ॥ शिलाके स्थापन के समयम हस्ती
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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