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________________ अत्रि पुलह पुलस्त्य ऋतु अंगिरा भृगु सनत्कुमार सनक सनन्दन ॥ १७२ ।। सनातन दक्ष जैगीषव्य भलन्दन पकत द्वित त्रित जाबालि और कश्यप ॥ १७३ ॥ दुर्वासा दुर्विनीत कण्व कात्यायन और दीर्घतपा मार्कण्डेय शुनाशेफ और विदूरथ ॥ १७४ ॥ और्व संवर्तक च्यवन अत्रि पराशर द्वैपायन यवक्रीत और अनुजसहित देवराज ॥ १७५ ॥ पर्वत वृक्ष वल्ली और पुण्यस्थान प्रजापति दिति और विश्वकी माता गौ ॥ १७६॥ दिव्य वाहन और संपूर्ण चराचर लोक अग्नि पितर मेष आकाश दिशा जल ।। १७७ ॥ ये और वेदके व्रतमें सनातनश्च दक्षश्च जैगीषव्यो भलन्दनः । एकतश्च द्वितश्चैव त्रितो जाबालिकश्यपौ ॥ १७३ ।। दुर्वासा दुर्विनीतश्च कण्वः कात्या यनस्तथा । मार्कण्डेयो दीर्घतपाः शुनःशेफो विदूरथः॥ १७४ ॥ और्वः संवर्तकश्चैव च्यवनोऽत्रिः पराशरः । द्वैपायनो यवक्रीतो देवराजः सहानुजः ॥ १७५॥ पर्वतास्तरवो वल्ल्यः पुण्यान्यायतनानि च । प्रजापतिर्दितिश्चैव गावो विश्वस्य मातरः ॥ १७६॥ वाहनानि च दिव्यानि सर्वे लोकाश्चराचराः । अग्नयः पितरस्तारा जीमूताः खं दिशो जलम् ॥ १७७ ॥ एते चान्ये च बहवो वेदव्रतपरायणाः । सेन्द्रा देवगणाः सर्वे पुण्यश्रवणकीर्तनाः॥ १७८॥ तोयैस्त्वामभिषिञ्चन्तु सर्वोत्पातनिबर्हणे । यथाभिषिक्तो मघवानेतैर्मुदितमानसः॥ १७९ ॥ इत्येतेश्वार्थकल्पैस्तु सहितैः समरुद्गणः । अभिषकं प्रकुर्वीत मन्त्रैः पौराणिकैस्तथा ॥ १८ ॥ । ततः शुद्धोदकैः स्नानं यजमानस्य कारयेत् । वास्तुमण्डलमध्ये तु ब्रह्मस्थाने प्रपूजयेत् ॥ १८ ॥ परायण अन्य बहुतसे ऋषि इन्द्रसहित देवताओंके गण और जिनका पुण्य यश कीर्तन है वे सब ॥ १७८ ॥ सम्पूर्ण उत्पातोंकी शान्तिके | लिये जलोंसे आपका ठस प्रकार अभिषेक करो जैसे प्रसन्न मनसे इन्होंने इन्द्रका अभिषेक किया है ॥ १७९ । अर्थके जानने में समर्थ इन छ। देवताओंका नाम लेकर मरुद्गण सहित पुराणके मन्त्रोंसे अभिषेक करे ॥ १८० ॥ फिर शुद्धजलोंसे यजमानको अभिषेक करावे फिर
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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