SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि.प्र. १४५ ॥ ॐ पुरातन सिद्ध हैं वे भी है यजमान ! आपका अभिषेक करो ॥ १६३ ॥ ब्रह्मा विष्णु शंभु साध्य मरुद्गण आदित्य वसु रुद्र और वैद्योंमें उत्तम अश्विनीकुमार ॥ १६४ ॥ देवताओंकी माता आदीति स्वाहा सिद्धि सरस्वती कीर्ति लक्ष्मी दिति श्री सिनीवाली और कुछ ॥ १६५ ॥ | दिति सुरसा विनता कटु और जो देवताओंकी पत्नी शास्त्रों में कही हैं और देवताओंकी माता ॥ १६६ ॥ भो यजमान ! ये सब आपका अभिषेक करो और शुभ अप्सराओंक गण नक्षत्र मुहूर्त और अहोरात्र की संधि ॥ १६७ ॥ संवत्सर जिनके स्वामी कला काष्ठा क्षण और अदितिर्देवमाता च स्वाहा सिद्धिः सरस्वती । कीर्तिर्लक्ष्मीर्द्युतिः श्रीश्व सिनीवाली कुद्दूस्तथा ॥ १६५ ॥ दितिश्च सुरसा चैव विनता कडुरेव च । देवपत्न्यश्च याः प्रोक्ता देवमातर एव च ॥ १६६ ॥ सवस्त्वामभिषिञ्चन्तु शुभाश्वाप्सरसां गणाः । नक्ष त्राणि मुहूर्ताश्च याश्चाहोरात्रसन्धयः ॥ १६७ ॥ संवत्सरा दिनेशाश्च कलाकाष्ठाक्षणा लवाः । सर्वै त्वामभिषिञ्चन्तु कालस्या वयवाः शुभाः ॥ १६८ ॥ एते चान्ये च मुनयो वेदत्रतपरायणाः । सशिष्यास्तेऽभिषिञ्चतु सदानाश्च तपोधनाः ॥ १६९ ॥ वैमानिकाः सुरगणाः सवैः सागरैः सह । मुनयश्च महाभागा नागाः किम्पुरुषाः खगाः ॥ १७० ॥ वैखानसा महाभागा द्विजा वैहायनाश्च ये । सप्तर्षयः सदाराश्च ध्रुवस्थानानि यानि च ॥ १७१ ॥ मरीचिरत्रिः पुलहः पुलस्त्यः क्रतुरङ्गिराः । भृगुः सन कुमारश्च सनकोऽथ सनन्दनः ॥ १७२ ॥ लव शुभदायी कालके अवयव भो यजमान ! ये सब आपका अभिषेक करो ।। १६८ ।। ये देवता और अन्य जो वेदव्रतमें परायण मुनि हैं वे शिष्यों सहित दानी और तपोधन भो यजमान ! आपका अभिषेक करो ।। १६९ ॥ विमानमें स्थित देवताओंके गण शब्दायमान समुद्र महा भागी मुनि नाग किंपुरुष खग ॥ १७० ॥ महाभागी वैखानस आकाशगामी पक्षी स्त्रियोंसहित सप्त ऋषि और जो ध्रुवस्थान हैं ॥ १७१ ॥ मरीचि भा. टी. अ. ५ ॥ ४५ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy