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________________ वि. प्र. ॥ ३७ ॥ इनके अन्त में स्थित जो हैं इन सबको एक एक पदमें ईशान आदि दिशाओं में स्थित करे, अर्यमा तीन पदका और सविता एक पदका होता है। ॥ ५९ ॥ विवस्वान् तीनपदका दक्षिण दिशा में होता है. इंद्र एक पदका नैर्ऋतमें और मित्र एकपदुका पश्चिममें कहा है ॥ ६० ॥ वायव्य में एक पदका राजयक्ष्मा कहा है, उत्तरमें त्रिपदा और घराय एक पदके कहे हैं ॥ ६१ ॥ मध्यमें नौ ९ पदका ब्रह्मा पीत श्वेत और चतु तदंतगांश्चैकपदानीशानादिषु विन्यसेत् । अर्यमा त्रिपदः पूर्वे सविता च तथैकपात् ॥ ५९ ॥ विवस्त्रांत्रिपदो याम्ये इन्द्रश्चैक पदस्तथा । नैर्ऋते पश्चिमे मित्रस्त्रिपदः परिकीर्तितः ॥ ६० ॥ वायव्ये राजयक्ष्मा च एकपादः प्रकीर्तितः । उत्तरे त्रिपदा पृथ्वी धरायश्चैकपात्तथा ॥ ६१ ॥ मध्ये नवपदो ब्रह्मा पीतः श्वेतश्चतुर्भुजः । आह्मन्त्राह्मण इति मंत्रोऽयं समुदाहृतः ॥ ६२ ॥ अर्यमा कृष्णवर्णश्व अर्यम्णा च वृहस्पतिः । सविता रक्तवर्णस्तु उपयामगृहीतकम् ||६३ || विवस्वाच्छुक्कवर्णश्व विवस्वन्नादित्यमन्त्रतः । इन्द्रो रक्तेन्द्रसुत्रामा मंत्रोऽयं समुदाहृतः ॥ ६४ ॥ र्भुजी कहा है. उसकी पूजाका मन्त्र आवाह्मन्ब्राह्मणः यह कहा है ।। ६२ ।। अर्यमा कृष्णवर्णका और अर्यमणं बृहस्पतिम् यह उसका मंत्र कहा है, सविता (सूर्य) रक्त वर्ण और उपयाम गृहीतः यह उसका मंत्र कहा है ॥ ६३ ॥ विवस्वान शुक्ल वर्ण और विवस्वन्नादित्य यह उसका मंत्र रक्त और इंद्र सुत्रामा० यह उसका मन्त्र कहा है ।। ६४ ।। १ ह्मन् ब्राह्मणी ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रेराजन्यः शूर इषव्योऽतिव्याची महारथो जायतां दोग्ध्री घेतुवद्वान ड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धियोंपा जिष्ण रथेष्टास्तभ्यां युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां निकामनिका मेनः पर्जन्यो वर्षतु फळवत्यो न ओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमोनः कल्पताम् ॥ २ अयमणं वृहस्पतिमिन्द्रं दानाय बोदय । वाचं विष्णु सर ॐ स्वती सवितारे च वाजिनम् खाहा ॥ ३ उपयाम गृहीतोसि इत्यादिमंत्राः ४ विवस्वन्नादिन्यषते सोमपीथस्तस्मिन्मत्स्व । श्रइस्मै नरो वचसे दधातन यदाशीदी दम्पती वाममश्नुतः । पुमान् पुत्रो जायते विन्दते वस्वधाविश्वाहारप एधते गृहे ॥ ५ इन्द्रसुवामा स्वाँ २ अवोभिस्समृडीको भवतु विश्ववेदाः । बाधन्तां द्वेषो अभयं कृणोतु सुवीर्यम्प पतयः स्याम ॥ भा. टी. अ. ५ ।। ३७ ।।
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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