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कासम्पूर्ण देवताओंका और ३५ पैंतीस देवताओंका पूजन करे ॥५०॥ शिखी देवता एक पदका कहा है और पर्जन्य भी एकही पदका होता
है. जयन्त दो पदका और सूर्यमी दो पदका सत्य भृश ये दोनों दो कोष्ठके होते हैं ॥ ५१॥ अन्तरिक्ष एक पदका और वायुभी एक पदका है ॥ ५२ ॥ पूषा एक पदका और वितथ दो पदका होता है. दक्षिणदिशामें स्थित गृहक्षत और यम ये दोनों दो पदके होते हैं ।। ५३ ॥ गन्धर्व
और मृगराज ये भी दो पदके कहे हैं. मग पितृगण और दौवारिक ये एकपदके होते हैं ॥ ५४॥ सुग्रीव पुष्पदन्त और वरुण ये दो पदके | | शिखी चैकपदं प्रोक्तः पर्जन्यश्च तथैव च । जयन्तो द्विपदः सूर्यः सत्यभृशौ द्विकोष्टको ॥५१॥ पदैकमन्तरिक्षस्तु वायुश्चैकपदः स्मृतः ॥५२॥ पूषा चैकपदो ह्यस्मिन्द्रिपदो वितथस्तथा। द्विपदौ दक्षिणाशास्थौ गृहक्षतयमावुभौ ॥५३॥ गन्धर्वमृगराजौ तु द्विपदी परिकीर्तितौ । मृगः पितृगणश्चैव दौवारिकश्चकपादकः॥ ५४ ॥ सुग्रीवपुष्पदन्तौ च द्विपदी वरुणस्तथा । असुरश्च तथा शोको द्विपदाः परिकीर्तिताः ॥५५॥ पापो रोगस्तथा सर्पस्त्रयश्चैकपदा मताः। मुख्यभल्लाटसोमाख्यात्रिपदास्ते त्रयः स्मृताः ॥५६॥ सर्पश्च द्विपदः प्रोक्तो ह्यदितिश्च तथैव च । दितिश्चैकपदा प्रोक्ता द्वात्रिंशद्राह्यतः स्थिताः॥२७॥ ईशानादिचतुष्कोणे संस्थितान्पूजयेदवुधः । आपश्चैवाथ सावित्रो जयो रुद्रस्तथैव च ॥५८॥ असुर अशोक ये भी दो पदके कहे हैं ॥५५॥ पाप रोग और सर्प ये तीनों एक पदके कहे हैं, मुख भल्लाट और सोम ये तीनोंभी एक एक ५ पदके कहे हैं ॥ ५६ ॥ सर्प और अदिति ये दोनों दोदो पदके कहे हैं, दिति एक पदकी कही है, और बत्तीस ३२ देवता कोष्ठोंसे बाहिर स्थित है ॥ ५७ ॥ ईशानआदिचारों कोणोंमें जो स्थित हैं इनका पूजन बुद्धिमान मनुष्य करे जल और सावित्र जय और रुद्र ॥५८॥