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________________ किये गिरा और ईशान दिशामें स्थितहुआ ॥३॥ उसके शिरभागमें आग्न स्थित है मुखमें जल स्तनमें यम उत्तरभागमें स्थित आपवत्स वामस्तनमें स्थित रहताहै ॥ ४ ॥ पर्जन्य आदि देवता नासिका नेत्र कर्ण उर-स्थल ओर म्कन्धोंमें स्थित रहते हैं और सप्त आदि पनि पुरुषो| तमकी भजामें स्थित करे और हस्तमें सूर्य सावित्री इनका हाथमें वितथ और गृहक्षत ॥५॥ इनका पार्श्वमें और जठर (पेट) चारों तरफ विवस्वान स्थित रहताहै और उस (जंघा ) जानु स्फिक ये यमदिशा आदिसे स्थित रहते हैं ये दक्षिणपार्श्व और वामपार्च दोनों में स्थित शिरोभागे स्थितो वह्निर्मुखे आपः स्तने यमः । आपवत्सश्चोत्तरस्यां सव्यमार्गसमाश्रितः॥४॥पर्जन्याद्यास्तथा नासाहक्छ्योरः स्थलांसगाः। सप्तायाः पञ्च च भुजे विन्यस्य पुरुषोत्तमे। हस्ते सविता सावित्री वितथोऽथ गृहक्षतः॥५॥ पार्श्व जठरे विवस्वाँश्च आस्थितः परितस्सदा । ऊरू जानू जयस्फिचो यमायैः परिवेष्टिताः । एते दक्षिणपार्श्वस्था वामपार्श्वे तथैव च ॥ ६॥शेषा दण्डजयन्तौ च मेढ़े ब्रह्मा हृदि स्थितः।। पादे समाश्रित इति पितृभिः परिखान्तिः । चत्वारिंशत्पञ्चयुक्ताः परितो ब्रह्मणस्तथा ॥ ७॥ चतुष्पष्टिपदे वास्तौ देवा ब्रह्मादयस्तथा । कोणे तेषां प्रकर्तव्यास्तियनकोष्टगता द्विजाः ॥ ८॥ चतुःपष्टिपदो वास्तुः प्रासादे ब्रह्मणा स्मृतः । ब्रह्मा चतुष्पदो ह्यत्र कोणायदै पदाः स्मृताः ॥ ९॥ रहते हैं ॥६॥ शेष देवता और दण्ड जयन्त ये लिंगइन्द्रियमें स्थित रहते हैं और चरणोंमें पितरों सहित वास्तुपुरुष रहता है (४५) पैतालीस कोष्ठ | चारों तरफ ब्रह्माके होते हैं ॥ ७ ॥ चौसठ पदकं वास्तुमें ब्रह्मा आदिक देवता रहते हैं और उनके कोणमें तिरछे कोष्ठोंमें द्विज रहते है ॥ ८॥ ब्रह्माने चौसठ पदका वास्तु प्रासादमें कहा है, ब्रह्मा वास्तुमें चतुप्पद कहा है और कोणक विष आधे २ पद कहे हैं ॥९॥ सोलह कोणाम सार्द्ध
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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