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________________ ही करती है और व्यंग (टी) भ्रष्ट और विवर्ण देह ( मैली) व्यय अर्थात अधिक खर्च वा नाशको करती है ॥५१ ॥ धनकी भी नष्टताको करती है, विस्तारके घरका जो प्रमाण हो उसके समान शिल्पिजनोंके अनुकूल शिला बनवानी, पत्थरके घरमें शिला पत्थरकी ही बनवानी, शिलाके घरमें शिलाओंसे बनवानी और ईटके घरमें ईंटकाही पीठ कहा है ॥ ५२ ॥ भद्रनामके घरमें मूलपाद शिलास्थापन आदिका कहा है और पक्की ईटोंके घरमें ईटोंकाही मूलपाद बनवावे ॥ ५३ ॥ ईटाकाही बनवायहुए घरमें वास्तुके विषे शिलाके प्रमाणको देखना धनार्तिदा प्रस्तरगेहमाने कार्या शिला शिल्पिजनानुकूला।पाषाणगेहे कर्तव्या शिला पापाणसंभवा । शैलजे शैलजः पीठश्चेष्टके चैप्टकः स्मृतः॥५२॥ शिलान्यासादिको भद्रे मूलपादो विधीयते । पक्केष्टनिर्मिते चैव इष्टकानां च.कारयेत् ॥ ५३॥ इएका निर्मिते गेहे प्रमाणमिह लक्षयेत । अपरेषां गृहाणां तु शिलामानं न चिन्तयत् ॥ ५४ ॥ आधारभूता तु शिला प्रकल्प्या | दृढा मनोज्ञा परिमाणयुक्ता । सल्लक्षणा चापरिमाणमाना न चाधिका न्यूनतग न कृष्णा ॥५५॥ द्वाराधिपादीन्पतयो गजाश्वाः सम्पूजनीया बलिभिः समंत्रैः । सानार्थमानीय सुतीर्थतोय ततोपहारैः प्रतिपूज्य कुम्भम् ॥५६॥ ध्रुवे शिलायास्तु ततः खनित्वा कुम्भं प्रतिष्टाप्य शराङ्गलीयम् । विप्रादिवर्णानुगतः प्रशस्तस्तदर्द्धमानं तु तदद्रमानम् ॥ ५७॥ और अन्य घरामें शिलाके प्रमाणकी चिन्ता न करनी ॥ ५४॥ आधारकी जो शिला है वह ऐसी बनवानी जो दृट मनोहर परिमाणमे युक्त उनम जिसके लक्षण हो जो परिमाणके मानमे न अधिक न अत्यन्त न्यून हो और जिमका रंग काला हो ॥ ५५ ॥ द्वारके अधिप आदि भस्वामी गज अश्व इनका बलि और मंत्रोंसे भलीप्रकार पूजन करे फिर स्नान के लिय मन्दर तीर्थके जलको लाकर पृजाका सामाग्रियामे कुंभका पूजन कर ।। ५६॥ फिर शिलाके धृवभागमें पांच अंगुल खोदकर इस कुंभका स्थापन करे वह कुम्भ त्राह्मण आदि व मोके अनुमार
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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