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________________ कोश होता है ।। ३८ ॥ चार क्रोशका योजन और दश हाथका एक वंश होता है बीस हाधका निवर्तन और चौबीस हाथका क्षेत्र होता ॥ ३९ ॥ सौ घरोंका स्थान और गृह आदिकोंका निवर्तन इन सबका स्थान ८१ इक्यासी पदोंके वास्तुसे मापकर बनावै ॥ ४० ॥ चल और अत्यन्त स्थिरभेदसे दो प्रकारके प्रासाद कहे हैं. चौसठ ६४ प्रकारके मण्डप और देवताओंके आश्रय प्राकार ॥ ४१ ॥ और विशेष कर जो छत्र ( तम्बू ) हैं और जो आठ प्रकारके मण्डप हैं इन सबकी कल्पनाभी ६४ पदके वास्तुसेंही करे ॥ ४२ ॥ नगर ग्राप कोट और राजाओंके चतुष्कोशं योजनं तु वंशो दशकरैर्मितः । निवत्तनं विंशतिकरैः क्षेत्रं तच्च चतुष्करैः ॥ ३९ ॥ शतवेश्मनि देशांश्च गृहादीनां निवर्तनम् । एकाशीतिपदेनैव सर्व स्थानं च मापयेत् ॥ ४० ॥ प्रासादा द्विविधाः प्रोक्ताश्चलाः स्थिरतरास्तथा । मण्डपाश्च चतुष्पष्टिः प्राकारा देवताश्रयाः॥४१॥ विशेषेणापि ये छात्रास्तथा ये चाष्टमण्डपाः। चतुष्पष्टिपदेनैव सर्वानेतान्प्रमापयेत् ॥ ४२ ॥ नगरपामकोटादि स्थावराणि च भूभृताम् । स्थपतिस्थास्थितयतिप्रविभागेन मापयेत् ॥ १३ ॥ स्निग्धादिभूभागसमु त्थितानां न्यग्रोधबिल्वद्रुमखादिराणाम् । शमीवटोदुम्बरदेवदारुक्षीरस्वदेशोत्थफलद्रुमाणाम् ॥४४॥ उपोषितः शिल्पिजनस्तु येषां मध्यानु तीक्ष्णेन कुठारकेण । छिन्द्यात्ततो दिक्पतितोत्तरस्यां शुभे विलग्ने परिगृह्य शंकुम् ॥ १५॥ स्थावर गृह इनको स्थपति (प्रधान पुरुष कारीगर ) के यहां स्थित जो यति अर्थात् अकस्मात् आयाहुआ संन्यासी उसके प्रमाणसे माप ॥४३ ॥ स्निग्धआदि भूमिके मागमें पैदा हुए जो वट बेल खैर शमी न्यग्रोध गूलर देवदारु क्षीरके वृक्ष और अपने देशमें पेदाहुए फलके वृक्ष G॥४४ ॥ इन सबको उपवास किया है जिसने ऐसा शिल्पीजन मध्यभागमें तीक्ष्ण कुठारसे छेदन करे फिर (दिशाके पतिसे ) उत्तर दिशामें
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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