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________________ यहां अपने जनोंसे भेद होता है ॥ ६३ ॥ बृहस्पति नवमस्थानमें होय तो विद्या भोग आदिका आनंद होता है. बुध होय तो अनेक प्रकारके भोग, शुक्र होय तो विजय होता है ॥ ६४ ॥ चन्द्रमा होय तो धातुओंका नाश कहा है, सूर्य हो तो धर्मकी हानि, मंगल होय तो धनका नाश, शनैश्चर होय तो धर्ममें दूषण होता है ।। ६५ । दशव स्थानमें शुक्र होय तो शयन आसनकी सिद्धि होती है. बृहस्पति होय तो महान सुख, || बुध होय तो विजय और स्त्री धनकी वृद्धि होती है । ६६ । सूर्य होय तो मित्रोंकी वृद्धि, चन्द्रमा होय तो शोककी वृद्धि होती है. मंगल वागीशे नवमस्थाने विद्याभोगादिनन्दनम् । वुधे विविधभोगाश्च जीव च विजयो भवेत् ॥ ६४ ॥ चन्द्रे धातुक्षयः प्रोक्तो धर्महा निश्च भास्करे । कुजे चार्थक्षयं विद्याविजे धर्मदूषणम् ॥ ६५॥ दशमस्थानगे शुके शयनासनसिद्धयः । सुराचार्य महत सौख्यं विजयं स्त्री धनं बुधे ॥ ६६ ॥ मार्तण्डे च सुहृद्वृद्धिश्चन्द्रे शोकविवर्द्धनम् । भौमे रत्नागमः प्रोक्तः कोणे कीर्तिविलोपनम् | ॥६७॥ लाभस्थानेषु सर्वेषु लाभस्थानं विनिर्दिशेत् । व्ययस्थानेषु सर्वेषु विनिर्देश्यो व्ययः सदा॥ ६८॥स्वोच्च पूर्णफलः प्रोक्तः पादोन स्वसंगो ग्रहः । स्वत्रिकोणेऽर्द्धफलदः पादं मित्रगृहाश्रितः ॥ ६९ ॥ समझे रिपुराशौ च समकष्टफलौ ग्रहौ । नीचस्थो निष्फलः प्रोक्तो वर्ग सत्फलदः शुभः ॥ ७० ॥ इति वास्तुशास्त्र तृतीयोऽध्यायः ॥ ३॥ होय तो रत्नोंका आगम, शनि होय तो कीर्तिका लोप होता है । ६७ ॥ लाभस्थानमें संपूर्ण ग्रह होय तो लाभको कहे. व्यय १२ स्थानमें संपूर्ण ग्रह होय तो सदेव ग्ययको कहै ॥ ६८ ॥ अपने उच्चका ग्रह होय तो पूर्ण फल कहा है, अपनी राशिका ग्रह हो तो पादोन कहा है. अपने | त्रिकोणका होय तो आधा फल देता है. मित्रके गृहका होय तो चौधाई फलको देता है ॥ ६९ ॥ समराशि वा रिपुकी राशिके ग्रह होयँ तो समता और कए फलको देते हैं, नीचराशिमें स्थित ग्रह निष्फल कहा है. वर्गका होय तो श्रेष्ठफलका दाता शुभ कहा है ॥७०॥ इति पं० मिहिर
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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