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वि. प्र. ॥ २८ ॥
धनका आगमन होता है. शुक्र होय तो पुत्र और सुखकी प्राप्ति, बुध होय तो रत्नोंका लाभ होता है ॥ ५६ ॥ सूर्य होय तो पुत्रोंका दुःख, चन्द्रमा होय तो कलह कहा है, मंगल होय तो कार्यका विरोध, शनैश्वर होय तो बन्धुओंमें लड़ाई होती है ॥ ५७ ॥ छठे स्थान में सूर्य होय तो रोग नाशकों को चन्द्रमा होय तो पुष्टि. मंगल होय तो प्राप्ति, शनैश्वर होय तो शत्रुओं चलका क्षय होता है ॥ ५८ ॥ बृहस्पति होय तो मंत्रा उदय कहा है. शुक्र हो तो विद्याका आगम कहा है और बुध हो तो भलीप्रकार ज्ञान और अर्थमें कुश सुतदुःखसहस्रांशी शशांक कलहः स्मृतः ॥ भौम कार्यविरोधः स्यात्सौरे बंधुविमर्दनम् ।। ९७ ।। पष्टस्थानगते सूर्य रोगनाश विनिर्दिशेत् । चन्द्रे पुष्टिः कुजे प्राप्तिः सारे शत्रु लक्ष्यः ॥५८॥ गुरौ मन्त्रोदयः प्रोक्तो भृगो विद्यागमो भवेत् । सम्यग्ज्ञानार्थ कौशल्य नक्षत्रपतिनन्दने ॥ ५९ ॥ सप्तमस्थानगे जीवे बुधे दैत्यपुरोहिते । गजवाजिधरित्रीणां क्रमाल्लाभं विनिर्दिशेत् ॥ ६० ॥ भास्करे कीर्तिभङ्गः स्यात्कुजे विपदमादिशेत् । हिमगौ केश आयासः पतंगे व्यङ्गता भयम् ||६१|| नैधने च सहस्रांशी विद्विषो जनितापदः । हानिः शीतमयखे च भौमे सौरेच रुग्भयम् ॥ ६२ ॥ बुधे मानधनप्राप्तिजीव च विजयो भवेत् । शुक्रे स्वजन भेदः स्यान्मंत्रज्ञस्यापि देहिनः ॥ ६३ ॥
लता होती है ॥ ५९ ॥ सातवें स्थान में बृहस्पति बुध और शुक्र होय तो क्रमसे गज वाजी और पृथिवीके लाभको कहे ॥ ६० ॥ सूर्य होय तो कीर्तिका नाश होता है. मंगल होय तो विपत्तियोंको कहे. चंद्रमा होय तो क्रेश और परिश्रम होता है, सूर्य होय तो अंग हीनता और भय होता है ॥ ६१ अष्टमस्थान में सूर्य होय तो वैरियोंसे दुःख होता है. चन्द्रमा होय तो हानि, मंगल शनैश्वर होयँ तो रोगका भय होता है ॥ ६२ ॥ बुध होय तो मान और धनकी प्राप्ति, बृहस्पति होय तो विजय होता है. शुक्र होय तो मंत्रके ज्ञाताभी मनुष्यके
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भा. टी.
अ.
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