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वज्रका पात, चन्द्रमा होय तो कोशकी हानि, मंगल होय तो मृत्यु, शनैश्वर लग्नमें होय तो दारिद्र्य ॥ ४९ ॥ बृहस्पति होय तो धर्म अर्थ काम, शुक्र होय तो पुत्रोंकी उत्पत्ति, बुध होय तो जन्मभर अच्छे काममें प्रवृत्ति होती है ॥ ५० ॥ दूसरे स्थान में सूर्य होय तो हानि, चन्द्रमा होय तो शत्रुओं का नाश, मंगल होय तो बंधन और शनैश्वर होय तो नाना प्रकार के विघ्न होते हैं ॥ ५१ ॥ बुध होय तो धनकी सम्पत्ति, वृह |स्पति होय तो धर्मकी वृद्धि और शुक्र होय तो यथेच्छ आनंदसे फलोंकी कामनासिद्धि होती है ॥ ५२ ॥ तीसरे स्थानमें पापग्रह होय और जीव धर्मार्थकामाः स्युः पुत्रोत्पत्तिश्व भार्गव । चंद्रजेः कुशलासक्तिर्यावदायुः प्रवर्त्तत ॥ ५० ॥ द्वितीयस्थे खाँ हानिश्चन्द्र शत्रुक्षयो भवेत् । भूमिजे बन्धनं प्रोक्तं नानाविघ्नानि भानुजे ॥५१॥ बुधे द्रविणसंपत्तिर्गुरौ धर्माभिवर्द्धनम् । यथाकामविनोदेन भृगों कामं व्रजेत्फलम् ॥ ५२ ॥ तृतीयस्थेषु पापेषु सौम्येष्वेव विशेषतः । सिद्धिः स्यादचिरादेव यथाभिलषितं प्रति ॥५३॥ चतुर्थस्थानगे जीवे पूजा संपद्यते नृपात् । चन्द्रजे चार्थलाभः स्याद्भूमिलाभश्च भार्गवे ॥ ५४ ॥ वियोगः सुहृदां भानौ मन्त्रभेदो महीसुते । बुद्धिनाशो निशाना सर्वनाशोऽर्कनन्दने ॥ ५५ ॥ पञ्चमे तु सुराचार्ये मित्र वसुधनागमः । शुके पुत्रसुखावाती रत्नलाभस्तथेन्दुजे ॥ ५६ ॥
विशेषकर सौम्यग्रह होय तो अल्प कालमेंही अपनी इच्छानुसार सिद्धि होती है ॥ ५३ ॥ चाथ स्थानमें बृहस्पति होय तो राजासे पूजा प्राप्त होती है, बुध होय तो धनका लाभ और शुक्र होय तो भूमिका लाभ होता है ॥ ५४ ॥ सूर्य होय तो मित्रका वियोग, मंगल होय तो मंत्रका भेद, चंद्रमा होय तो बुद्धिका नाश और शनैश्वर होय तो सबका नाश होता है ॥ ५५ ॥ पंचममें बृहस्पति होय तो मित्र और रत्न