SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि. प्र. भा टी अ.३ अग्निके नक्षत्रम सूर्य वा चंद्रमा स्थित होय तो एसे लग्नमें बनायाहुआ मंदिर थोडे दिनाम निश्चयसे अग्निसे दग्ध होता है ॥ ४३ ॥ ज्येष्ठा अनुराधा भरणी स्वाती तीनों पूर्वा और धनिष्ठा इन नक्षत्रोंमें और शनैश्चर के दिन बनाया मंदिर ॥ ४४ ॥ नामसे कुपण कहाता है। 0 और धन धान्यसहितभी उस घरमें उत्पन्नहुआ पुत्र यक्ष और राक्षसोंसे ग्रहण कियाजाता है ।। ४५ ॥ प्रासादोंमें वापी कूप आदिमें भी यही छ फल होता है तिससे शुभका अभिलाषी मनुष्य विचारकर घरका आरंभ करें ॥ ४६॥ मकर वृश्चिक कर्क लग्नमें गृहका आरंभ होय तो नाश अग्निनक्षत्रगे मूर्य चन्द्रे वा तत्र संस्थिते । निर्मित मंदिरं नूनमग्निना दह्यतेऽचिरात् ॥४३॥ ज्यष्टानुराधके चैव भरणीस्वाति पूर्वमे । धनिष्टास्वपि ऋक्षेषु शनिस्तिष्टदिनस्य च ॥ ४४ ॥ कृपणो नामतः प्रोक्तो धनधान्यादिके गृहे । पुत्रे जातेऽथवा तस्मिन्गृह्यते यक्षराक्षसैः ॥४५॥ प्रासादप्वेवमेव स्याद्वापीकूपेषु चैव हि । तस्माद्विचार्य कर्तव्यो गृहारम्भः शुभेप्सुना ॥४६॥ नाशं दिशन्ति मकरालिकुलीरलग्ने मेपे घटे धनुपि कर्मसु दीर्घसूत्रम् । कन्याझपे मिथुनगे ध्रुवमर्थलाभं ज्योतिर्विदः कलश सिंहवृपेषु सिद्धिम् ॥ १७ ॥ मध्याह्ने तु कृतं वास्तु कवित्तविनाशनम् । महानिशास्वपि तथा सन्ध्ययो व कारयेत् ॥ ४८ ॥ अथ भावफलानि ॥ लगेऽर्के वज्रपातः स्यात्कोशहानिश्च शीतगौ । मृत्युर्विश्वम्भरापुत्र दारिद्यं रविनन्दने ॥ १९ ॥ हो, मेष धन तुला लग्नमें होय तो काममें दीर्घसूत्र ( देर ) हो, कन्या मीन मिथुनमें होय तो निश्चयसे अर्थका लाभ हो, कुंभ सिंह और वृषमें: सिद्धिको देता है एसे ज्योतिःशास्त्रके ज्ञाता वर्णन करते हैं ॥ ४७ ।। मध्याहमें कियाहूआ वास्तु कर्ता और धनके नाशको देता है, अड़ेराविमें भी तैसाही फल है और सन्ध्यामेभी गृहके आरंभको न करें ॥ १८ ॥ इसके अनंतर भावोंके फलको कहते हैं-लग्नमें सूर्य हो तो
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy