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मरण होता है ॥ १९ ॥ मनुष्यलग्न होय और सौम्यग्रहों की दृष्टिका योग होय तो कुंभसे भिन्न किसी सौम्यग्रहसे युक्त लग्नमें ॥ २० ॥ जलाशय आदि वास्तुओंका प्रारंभ शुभदायी कहा है ॥ २१ ॥ इसके अनंतर यागोका वर्णन करते हैं-गुरु लग्न में हो, सूर्य छठे हो और के सौम्यग्रह धून ( ७ ) में हो, शुक्र सुख ( ४ ) में तीसरे शनैश्चर हो ऐसे लग्नमें बनाया जो घर उसक सौ १०० वर्षकी अवस्था होती है ॥ २२ ॥ शुक्र लग्नमें हो और दशमें सौम्यग्रह, सूर्य लाभ ११ स्थान में हो गुरु केन्द्र में होय तो उस लग्नमें बनाया मंदिर सौ १०० वर्ष टिकता है ॥ २३ ॥ मनुष्यलग्ने सौम्यानां दृग्योगे यो गतस्तथा कुम्भं विहायान्यतरे लग्ने सम्यग्रहान्विते ॥ २० ॥ जलाशयादिवास्तूनां प्रारम्भः शुभदुः स्मृतः ॥ २१॥ अथ योगाः ॥ गुरुर्लने रविः षष्ठे द्यूने सौम्ये सुखे सिते । तृतीयस्थेऽर्कपुत्रे च तद्गृहं शतमायुपम् ॥२२॥ भृगुर्लग्नेऽम्बरे सौम्ये लाभस्थाने च भास्करे । गुरुः केन्द्रगतो यत्र शतवर्षाणि तिष्ठति ॥ २३ ॥ हिकेज्येऽम्बरे चन्द्रे लाभ च कुजभास्करौ । प्रारंभः क्रियतं यस्य अशीत्यायुः क्रमाद्भवेत् ॥ २४ ॥ लग्ने भृगौ पुत्रगेज्ये षष्ठे भौमे तृतीयगं । खाँ यस्य गृहारम्भः स च तिष्ठेच्छत द्वयम् || २५ || लग्नस्थों गुरुशुकौ च रिपुराशिगते कुजे । सूर्ये लाभगते यस्य द्विशताब्दानि तिष्ठति ॥ २६ ॥ स्वोच्चस्थो वा भृगुर्लग्न स्वाच्च जीवे सुखस्थिते । स्वोच्चे लाभगत मन्दे सहस्राणां समा स्थितिः ॥ २७ ॥
चौथे गुरु हो १० दशमें चन्द्रमा हो लाभमें मंगल और सूर्य हो ऐसे लग्नमें जिसका प्रारंभ किया जाय उसकी ८० अस्मी वर्षकी अवस्था होती है ॥ २४ ॥ लग्नमें शुक्र हो पंचम में गुरु हो छठे ६ मंगल हो तीसरे सूर्य हो ऐसे लग्नमें जिस घरका आरंभ हो वह २० वर्षतक टिकता है ।। २५ ।। लग्नमें गुरु शुक्र स्थित हो और छटी राशिपर मंगल हो और सूर्य लाभमें हो ऐसे लयमें बनाया हुआ घर २०० वर्ष टिकता है ।। २६ ।। अपने उच्चका शुक्र लग्नमें हो अपने उच्चका बृहस्पति सुख ४ में हो और अपने उच्चका शनि लाभमें हो एस लग्नमें जिस