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वि.प्र.
माटी,
अ.३
काघरका आरंभ कियाजाय ऐसा घर हजार १००० वर्षतक टिकता है॥ २७ ॥ अपने उच्चके वा अपने अपने गृहक वा लग्नमें स्थित अथवा केंद्र स्थित सौम्यग्रह हा पेसे लग्नमें जिसका प्रारंभ हो वह गृह दो सौ वर्षतक टिकता है ॥ २८ ॥ कर्कलग्नमें चन्द्रमा, केन्द्रमें बृहम्पति, मित्रगृह वा अपने उच्चके अन्य ग्रह होय तो उस घरमें चिरकालतक लक्ष्मी होती है ॥ २९ ॥ पुष्य तीनों उत्तरा आश्लेषा मृगशिर श्रवण रोहिणी और जलके नक्षत्र शतभिषा इनमें बनाया हुआ घर लक्ष्मीसे युक्त होता है ॥ ३० ॥ विशाखा चित्रा शतभिषा आद्रा पुनर्वसु धनिष्ठा और शुक्र स्त्रोच्च स्वभवने सौम्यर्लग्नस्थैर्वापि केन्द्रगैः । प्रारम्भः क्रियते यस्य स तिष्ठति शतद्वयम् ॥२८॥ ककलनगते चन्द्रे केन्द्रस्थाने च वाक्पतिः । मित्रस्वोचस्थितैः खेटेर्लक्ष्मीस्तस्य चिरं भवत् ॥२९ ॥ इज्योत्तरात्रयाहीन्दुविष्णुधातृजलोडुषु । वरुणासहि तेष्वेषु कृतं गेहं श्रिया युतम् ॥ ३० ॥ द्विदेवत्वाष्ट्रवारीशरुद्रादितिवसडुषु । शुक्रेण सहितेष्वेषु कृतं धान्यप्रदं गृहम् ॥३१॥ हस्तार्यमत्वाष्ट्रदस्रानुराधानारकासु च । बुधेन सहितप्वषु धनपुत्रसुखप्रदम् ॥ ३२ ॥ कुयोगाः ॥ शत्रुक्षेत्रगतैः खेटेर्नीचस्थैर्वा पराजितः । प्रारम्भे यस्य भवने लक्ष्मीस्तस्य विनश्यति ॥ ३३॥ एकोऽपि परभागस्थो दशमे सप्तमेऽपि वा। वर्णाधिपे बलहीने तद्गृहं परहस्तगम् ॥ ३४॥ वारसहित इन नक्षत्रोंमें बनाया हुआ घर अन्नको देता है ॥ ३१ ॥ हस्त उत्तराफाल्गुनी चित्रा अश्विनी और अनुराधा बुधवारसहित इन नक्षत्रोंमें बनाया घर धन पुत्र और सुखदायी होता है ॥ ३२ ।। अब कुयोगोंका वर्णन करते हैं-छठे स्थानमें ऐसे ग्रह पड़े होय जो नीचके हों वा पराजित धू हों ऐसे लग्नमें जिस गृहका प्रारंभ हो उसमें लक्ष्मीका नाश होता है ॥ ३३ ॥ जिस लग्नमें एकभी ग्रह परभागमें स्थित हो वा दशम सप्तममें स्थित
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