________________
| अमावास्याको राजासे भय. चतुर्दशीको पुत्र और द्वाराका नाश होता है, धनिष्टा आदि पांच ९ नक्षत्रोंमें स्तंभ का स्थापन न करे ॥ ६ ॥ सूत्रधार शिलाका स्थापन और प्राकार आदिको करले, दो प्रकारका यामित्र, वेध उपग्रह और कर्तरीयोग ये भी वर्जने योग्य हैं ॥ ७ ॥ एकार्गल, लना, युति और क्रकचयोग, दो प्रकारका पात, वैधृति ये भी वर्जित हैं ॥ ८ ॥ कुलिक कंटक काल यमघंट और जन्मसे तीसरा, पांचवां और छठा तारा और नक्षत्र वर्जित है ॥ ९ ॥ कुयोग, वनसंज्ञकयोग, तीन तिथियोंका जिसमें स्पर्श हो ऐसा दुष्टदिन, दशैं राजभयं भूते सुतदारविनाशनम् । धनिष्टापञ्चके नैव कुर्यात्स्तम्भसमुच्छ्रयम् ॥ ६ ॥ सूत्रधारशिलान्यासप्राकारादि समा लभेत् । यामित्रं द्विविधं वर्ज्य वधोपग्रहकर्त्तरी ॥ ७ ॥ एकार्गलं तथा लत्तायुतिककचसंज्ञकाः । पातं तु द्विविधं वर्ण्य व्यती पातश्च वैधृतिः ॥ ८ ॥ कुलिकं कंटकं कालं यमघण्टं तथैव च । जन्मतृतीयपञ्चाङ्गतारा वर्ज्यानि भानि च ॥ ९ ॥ कुयोगा व संज्ञश्च तथा त्रिस्पृक् खलं दिनम् । पापलग्नानि पापांशाः पापवर्गास्तथैव च ॥ १०॥ कुयोगास्तिथिवारोत्थास्तिथिभोत्था भवा रजाः । विवाहादिषु ये वर्ज्यास्ते वर्ज्या वास्तुकर्मणि ॥ ११ ॥ वास्तुचक्रं प्रवक्ष्यामि यच्च व्यासेन भाषितम् । यस्मिन्नृक्षे स्थितो भानुस्तदादौ त्रीणि मस्तके ॥ १२ ॥
पाप लग्न, पापका नवांश और पापग्रहों का वर्ग ये भी वर्जित हैं ॥ १० ॥ तिथि वारके कुयोग, तिथि नक्षत्रके कुयोग, नक्षत्र वारके कुयोग जो विवाह आदिमें वर्जित हैं वे वास्तुकर्म में भी वर्जित हैं ॥ ११ ॥ उस वास्तुचक्रको कहताहूं जो व्यासने कहा है, जिस नक्षत्रपर सूर्य होय उससे लेकर तीन नक्षत्र मस्तक पर रक्खे ।। १२ ।।