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________________ वि. प्र ॥ २४॥ वर्द्धमान कहते हैं. वह सब वोंको शुभदायी वृद्धि और पुत्र पौत्रोंको देता है ॥ १९५॥ जिसके पश्चिम और उत्तरमें अलिन्द हो और पर्वदिशाभा . टी. पर्यंत दो अलिन्द उठेहुए हों और उनके मध्यमें एक अलिन्द हो और पूर्वको जिमका द्वार हो उस घरको स्वस्तिक और सुखदायी कहने | ॥ १९६ ॥ जिस घरमें पूर्व और पश्चिममें दो अलिन्द हों और गृहके अन्ततक दो अलिन्द हों और उत्तरको जिसका द्वार न हो उस घरको अ. रुचकनामका कहते हैं॥ १९७ ॥ इति पं० मिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतिसहिते वास्तुशास्त्रे समगृहादिनिर्माणे द्वितीयोऽध्यायः॥ २॥ इससे पश्चिमोत्तरतोऽलिन्दः प्रागन्तौ द्वौ तदुत्थितौ । अन्यस्तन्मध्यविधृतः प्राग्द्वारं स्वस्तिकं शुभम् ॥ १९६॥ प्राक्पश्चिमावलिन्दी यावन्तगौ तद्भवौ परौ । सौम्यद्वारं विना तु स्यानुचकाख्यं तु तत् स्मृतम् ॥ १९७ ॥ इति वास्तुशास्त्रे समगृहादिनिम्माण द्वितीयोऽध्यायः॥२॥अथातः सम्प्रवक्ष्यामि गृहे कालविनिर्णयम् । यथाकालं शुभं ज्ञात्वा तदा भवनमारभेत् ॥१॥ मृदुध्रुवस्वातिपुष्यधनिष्टाद्वितये खौ । मूले पुनर्वसौ सौम्यवारे प्रारम्भणं शुभम् ॥२॥ आदित्यभौमवर्जन्तु वाराः सर्वे शुभावहाः।। द्वितीया च तृतीया च षष्टी च पञ्चमी तथा ॥३॥ सप्तमी दशमी चैव द्वादश्येकादशी तथा । त्रयोदशी पञ्चदशी तिथयः स्युः शुभावहाः॥४॥ दारिद्य प्रतिपत्कुयाच्चतुर्थी धनहारिणी। अष्टम्युच्चाटनं चैत्र नवमी शस्त्रघातिनी॥५॥ आगे कालका निर्णय कहते हैं-कालके अनुसार शुभ मुहूर्तको जानकर भवनका प्रारंभ करे ॥ १॥ मृदु (मृ.२० चि० अ०) व ( उ०|| ३ रो० स्वाति धनिष्ठा श्रवण मूल पुनर्वसु ) इनपर सूर्य हो और सौम्यवारको होय तो गृहका प्रारंभ श्रेष्ठ होता है ॥२॥ आदित्य भौमको छोडकर समस्त वार शुभदायी होते हैं।२।३।६।५।७।१०। १२ । ११ । १३ । और पूर्णिमा १५ ये तिथि शुभदायी कही हैं । ॥४॥ ॥ २४ ॥ प्रतिपदा दारिद्यको करती है और अष्टमी उच्चाटन करती है, नवमी शस्त्रोंसे घात कराती है ॥५॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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