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होते हैं और सम दाखदायी होते हैं ॥ १६० ।। व्याससे सोलहवें भागका जो प्रमाण वह सब गृहोंको मिति ( प्रमाण ) कही है यह उन गृहोंका प्रमाण है, जो पकी ईटाके हों काष्ठकी इंटांके कदाचित नहीं ॥१६१ ॥ राजा और सेनापति के जो घर उसके द्वारका प्रमाण युद्धिमानोंने | १८८ एकसा अट्ठासी अंगुलका कहा है ॥ १६२ ॥ ब्राह्मण आदिकोंके द्वारका प्रमाण २७ सत्ताईस अंगुल का कहा है, द्वारका प्रमाण जो कहा है उससे निगुनी ऊँचाई शास्त्रमें कही है ।। १६३ ।। ऊँचाईके हाथोंकी जो संख्या है उतनेही प्रमाणके अंगुल दोनों शाखाओंमें अधिक बन व्यासाच पोडशो भागः सर्वेषां मितयः स्मृताः । पक्वेटकाकृतानां च दारूणां न कदाचन ॥१६१ ॥ नृपसेनापतिगृहमष्टाशीति शतैर्युताः । अडुलानि द्वारमान प्रवदन्ति मनीपिणः ॥१६२॥ विप्रादीनां तथा सप्तविंशतिस्त्वङ्गलानि च । द्वारस्य मानं तत्प्रोक्तं त्रिगुणोच्छायमुच्यते ॥ १६३ ॥ उच्छायहस्तसंख्यायाः परिमाणान्यनुलानि च । शाखादयेऽपि बाहुल्य कार्य द्वादशसंयुतम्
॥१६४ ॥उच्छ्रायात्सप्तगुणिताद्दशेति पृथुता मता । भागः पुर्ननवगुणाऽशीत्यंशस्तत एव च ॥ १६५ ॥ दशांशहीनस्तस्यायः | स्तम्भानां परिमाणकम् । वेदास्रो रुचकः स्तम्भो वज्रोऽष्टात्रियुतो मतः ॥ १६६ ॥ द्विवज्रः पोडशानिः स्याद्विगुणात्रिः प्रली
नकः । समन्तवृत्तो वृत्ताख्यः स्तम्भः प्रोक्तो द्विजोत्तमैः ।। १६७ ॥ वावे और बारह अंगुल मिलावे ।। १६४ ॥ उँचाइसे सातगुनी दशा पृथुता ( लम्बाई चौडाई ) कही है और नौगुनेमें ८० अस्सीबां जो अंश उसे भाग और तत कहते हैं ॥ १६५ ॥ दशवें अंशसे हीन उमका अग्र कहा है अब स्तम्भोंके प्रमाणको कहते हैं जिसमें ४ कोण हों उस स्तम्भको रुचक और जिसमें आठ कोण हों उसे वञ कहते हैं ॥ १६ ॥ जिसमें १६ कोण हा वह द्विवज, जिसमें ३२ वत्तीम कोण हों उसे प्रलीनक कहते हैं।