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वि. प्र. शालाके तीसरे भागकी तुल्य वीथी ( गली ) बनवानी. भवनसे पूर्व भागमें उष्णीष वा वस्त्र रखनेका स्थान, पश्चिममें शयनका स्थान || भा टी
होता है ॥ १५४ ॥ जो शेषों पाश्वा में अवष्टम्भ सहित और सव दिशाओंमें हद होता है. विस्तारके सोलहवें भागमें चार हाथ मिलाकर जो प्रमाण हो ।। १५५ । उतना प्रमाण उसके मध्यकी ऊँचाईका बुद्धिमानोंने कहा है और समस्त घरोंकी ऊँचाई द्वादश भागसे न्यून बनवानी अ.२ ॥ १५६ ॥ पृथिवीके पति राजा राजसूय आदि यज्ञासे जो परमेश्वरका पूजन करते हैं उनका उत्तम भवन आठ जिनमें आधे हों ऐसे नलासे
शालाविभागतुल्या च कर्तव्या वीथिका बहिः । भवनात्पूर्वतोष्णीपं पश्चास्वापाश्रयं भवेत् ॥ १५४ ॥ सावष्टम्भं पार्श्वयोस्तु सर्वत्र सुस्थितं भवेत् । विस्तारपोडशांशस्तु चतुर्हस्तयुतश्च यः।। १५५॥ तदन्तरस्योच्चतरं प्रमाणं प्रवदेवुधः । द्वादशभा गेनोनं च समस्तानां प्रकल्पयेत् ॥ १५६॥ यजन्ते राजसूयाद्यैः क्रतुभिविनीश्वराः । नलेरीष्टमस्तेपां कारयेद्भवनोत्तमम् ॥ १५७॥ तथा च सप्तमेरेव विप्राणां कारयेद्गृहम् । अर्द्धपष्टैः क्षत्रियाणां वैश्यानामर्द्धपञ्चमैः ॥ १५८॥ विभिस्सादैश्च शूद्राणां भवनं शुभदं स्मृतम् । स्वगृहाणां विभागेन प्रमाणमिह लक्षयेत् ॥१५९ ॥ विस्तारायामगुणितं नलैः पोडशभिः स्मृतम् । विषमाः शुभदा ह्येते समा दुःखप्रदायकाः ॥ १६० ॥ बनवावे ॥ १५७ ॥ और सात जिनमें आधेहों ऐसे नलोंसे ब्राह्मणों के घरोंको बनवावे और छः जिनमें आधे हों उनसे क्षत्रियोंका, पांच जिनमें
आधेहों ऐसे नलोंसे वैश्योंका घर बनवावे ॥२५८ ॥ और ३जिनमें आधे हों ऐसोंसे शद्रोंका घर बनवाना कहा है, अपने अपने गृहोंके विभा ॐगसे यहां प्रमाण देखना ॥ १५९ ॥ विस्तार और आयाम जो १६ नलोंसे गुननेसे आवै उतना प्रमाण कहा है जो विषम आवे तो शुभदायी
॥ २१॥