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योंके भी पांचही गृह श्रेष्ठ लिखे हैं और वे ८० अस्सी हाथके विस्तारसे छः छः हाथ लम्बाइके होते है ॥ १३९ ॥ रानियोंके घरकी वि.प्र.
दीर्घतास ३० हाथ अधिक युवराजोंके घर होते हैं और युवराजके घरसे ५० हाथ अधिक राजाके भाइयोंके घर होते हैं ॥ १४० ॥
राजा मन्त्री इनके घरोंके बीचका जो प्रमाण उतना घर सामन्त और राजपुत्रोंमें श्रेष्ठोंका घर कहा है ॥ १४१ ॥ राजा और युवराजके ॥२०॥
Adगृहोंके बीचका जो प्रमाण है उतना घर कंचुकी वेश्या और कलाओंके ज्ञाताओंका होता है ॥ १४२ ॥ युवराज और मन्त्रियोंके घरका जो
त्रिंशद्यतं तद्देष्य च युवराजगृहाणि च । पञ्चाशदृवं तस्येव भ्रातृणां प्रभवन्ति च ॥१४०॥ नृपमन्त्रिगृहाणां च अन्तरे यत्प्रमा णकम् । सामन्तराजपुत्राणां प्रवराणां गृहं स्मृतम् ॥ १४१ ॥ नृपाणां युवराजस्य गृहाणामन्तरेण यत् । तदगृहं कञ्चुकी वेश्याकलाज्ञानां तथैव च ॥ १४२॥ युवराजमन्त्रिणां तु प्रभवेदि यदन्तरम् । अध्यक्षदूतगेई तत्कर्मसु कुशलाश्च ये ॥ १४३॥
अध्यक्षाधिकृतानां च रतिकोशप्रमाणकम् । चत्वारिंशच्चतुहीनाः पञ्च गेहा भवन्ति हि ॥१४४॥ षडूभागसंयुतं देध्य दैवज्ञभिषजां KI तथा । पुरोहितानां शुभदं सर्वेषां कथयाम्यतः॥ १४५॥ हस्तद्वात्रिंशता युक्तं विस्तारस्य द्विजालयम् । विस्तारसदृशांशस्तु
देय तस्य प्रकल्पयेत् ॥ १४६॥ मध्य प्रमाण हो उतना प्रमाणका घर अध्यक्ष ( साक्षी) दूत इनके कर्ममें जो कुशल हैं उनके घर होते हैं ॥१४३ ॥ अध्यक्ष अधिकारी इनके घरभी रति और कोश घरके प्रमाणमें होते हैं और छत्तीस ३६ हाथमें जिनका प्रत्येक प्रमाण हो ऐसे पांच घर होते हैं ॥ १४४ ॥ इनसे छठे भागसे युक्त जिनकी लम्बाई हो ऐसे घर ज्योतिषी और वेद्याके होते हैं और पुरोहिताका घरभी इसी प्रकारका सुखदायी होता है. इसके अनन्तर सबके गृहोंको कहताहूं ॥ १४५ ॥ बत्तीस हाथसे युक्त जिसका विस्तार हो ऐसा घर ब्राह्मणोंका होता है और विस्तारके तुल्य
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