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________________ वि. प्र. प्रसवकालमें बनवावे यह शास्त्रांका निश्चय है ॥ ९९ ॥ नवम मासके आने पर पूर्वपक्षके शुभ दिनमें प्रसूतिके प्रारंभ समयमें गृहका आरंभ चश्रेष्ठ कहा है ॥ १००॥ गुरुके नीचे लघुकी स्थापना करें और उसके आगे उध्वके समान स्थापना करे, गुरुओंसे पश्चिम और पूर्वमें ॥ १७॥ सब लघुओकी अवधिकी विधि होती है ॥ १०१ । लघुस्थानमें अलिंद ( देहली) को रक्खे और गुरुस्थानमें न रक्खे, गृहके द्वारसे प्रदक्षिण क्रमसे जो अलिंद हैं उनके सोलह १६ प्रकार होते हैं ॥ १०२ ॥ पहिला गृह ध्रुवसंज्ञक धन धान्यका और सुखका दाता होता है. दूसरा | मासे तु नवमे प्राप्ते पूर्वपक्षे शुभे दिने । प्रसूतिसम्भवे काले गृहारम्भणमिप्यते ॥ १० ॥ गुरोरधो लघुः स्थाप्यः पुरस्तादूर्घ वन्यसेत् । गुरुभिः पश्चिमे पूर्वे सर्वलघ्ववधिविधिः ॥१०१॥स्यादलिन्दो लघुस्थाने नालिंदं गुरुमाश्रितम् । प्रदक्षिणेहद्वारादा लिंदैर्दशपविधा ॥१०२॥ ध्रुवसंझं गृहं त्वाद्यं धनधान्यसुखप्रदम् । धान्यं धान्यप्रदं नृणां जयं स्याद्विजयप्रदम् ।। १०३॥ नन्द स्त्रीहानिदं नूनं खरं सम्पद्विनाशनम् । पुत्रपौत्रप्रदं कांतं श्रीप्रदं स्यान्मनोरमम् ॥ १० ॥ सुव भोगदं नूनं दुर्मुखं विमुख प्रदम् । सर्वदुःखप्रदं क्रूरं विपुलं शत्रुभीतिदम् ॥ १०५॥ धनदं धनदं गेहं क्षयं सर्वक्षयावहम् । आकन्दं शोकजनकं विपुल श्रीयश-प्रदम् ॥ १०६॥ Aधान्यनामक गृह मनुयाको धान्य देता है और तीसरा जय विजयको देता है ॥ १०३ ॥ और चौथा नन्द स्त्रियोंकी हानिको निश्चयसे || देता है और खर सम्पत्तिका नाश करता है, कान्त गृह पुत्र पौत्रों को देता है मनोरम गृह लक्ष्मीको देता है । १०४ ॥ सुबक गृह निश्चयसे भोग देता है, दुर्मुख गृह विमुखताको देता है, रगृह सब दुःखोंको देता है, विपुल गृह सब शत्रुओंकी भीतिको देता है ॥ १०५ ॥ धनद N
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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