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वि.प्र. अवस्थासे हीन घर होय तो स्वामी दुर्भागी होता है नाडीका वेध अशुभको देता है. तारा रोग और भयको देती है ॥ ८५ ॥ गणके भा.
शिविरमें पुत्र और धनकी हानि होती है और योनिमें कलह और महादुःख होता है और यमके अंशमें दोनोंका मरण होता है ॥ ८६॥ नक्ष ॥ १६॥ त्रकी एकतामें स्वामीकी मृत्यु और वर्णकी एकतामें वंशका नाश होता है. पापग्रहके वारमें दरिद्रता और बालकोंका मरण होता है ॥ ८७॥ अ.
कोई आचार्य शनैश्चरकी प्रशंसा करते हैं परन्तु शनैश्चरमें चोरोंका भय होता है, हे वरानने! (पार्वती) स्वामीके हस्तप्रमाणसे मृहको बनावे थे।
आयुर्विहीने गेहे तु दुर्भगत्वं प्रजायते । नाडीवेधो न शुभदस्तारा रोगभयप्रदा ॥ ८५ ॥ गणवेरे पुत्रहानिधनहानिस्तथैव च। योनी कलिमहादुःखं यमांशे मरणद्वयम् ॥ ८६॥ नक्षत्रैक्ये स्वामिमृत्युवणे वंशविनाशनम् । पापवारे दरिद्रत्वं शिशूनां मरणं | तथा ॥ ८७॥ केचिच्छनि प्रशंसन्ति चौरभीतिस्तु जायते । स्वामिहस्तप्रमाणेन गृहं कुर्याद्वरानने । रेखादिहस्तपर्यंतमोजसंख्या प्रशस्यते ॥ ८८॥ करमानादधिकं चेत्तदाङ्गुलानि प्रदाय हित्वा च । क्षेत्रफलं गणितन प्रसाधयेदिष्टसिद्धयर्थम् ॥ ८९ ॥ करमा
नादधिकं चेदङ्गलानि प्रसाधयेत् । दीर्घ देयानि वा नूनं न विस्तीर्ण कदाचन ॥ ९॥ अङ्गलैः कल्पिता नाभिर्वर्गीकृत्य पदं || भवेत् । प्राप्तहस्तादिमानं स्यात्कुर्यादापतनं ततः ॥९१॥ शारेखासे लेकर हस्तपर्यन्त विषम संख्या श्रेष्ठ कही है॥८८॥ हाथके प्रमाणसे अधिक होय तो अंगुलोंको लेकर वा छोडकर गणितसे क्षेत्र |
फलको इष्ट सिद्धिके लिये सिद्ध करे ॥ ८९ ॥ हाथके मानसे अधिक होय तो अंगुलिको सिद्ध करे और गृहके दीर्घ (लंबाई) में अंगुलोको | ॥ १५ ॥ वादे और विस्तारमें कदाचित न दे॥९०॥ अंगुलोंसे कल्पना की जो नाभि है उसका वर्ग करनसे पद होता है इस प्रकार प्राप्त हुआ जो all