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मघाआदि तीन सिंहमें कहे हैं ॥ ७७ ॥ मूलआदि तीन धनमें कहे हैं और शेषराशि दो दो नक्षत्रोंमें समझती, आदित्य और मंगलवार और इनकी राशियोंके अंश सदैव अनिके भयको देते हैं ।। ७८ ।। और शेष ग्रहोंके वार अंश कर्ताकी इष्टसिद्धिको देते हैं, गृहका आगत नक्षत्र यदि | राशिरूपहो ॥ ७९ ॥ तो उसके नवांशके वशसे सदैव गृहको जाने विपत्तारा विपत्तिको देती है, प्रत्यरि प्रतिकूल (उलटा ) फलको देती है ||८०|| निधननामकी तारा सर्वथा मरणको देती है. वर्जने योग्य इन ताराओं में गृहनिर्माण अशुभदायी होता है ॥ ८१ ॥ प्रत्यरितारा महान् मूलादित्रितयञ्चापे शेषराशिद्विके द्विके । सूर्यारवारराश्यंशाः सदा वह्निभयप्रदाः ॥ ७८ ॥ शेषग्रहाणां वारांशाः कर्तुरिष्टार्थ सिद्धिदाः । गृहस्यागतभं यत्तु तद्विराश्यात्मकं यदि ॥ ७९ ॥ तन्नवांशवशात्तत्र ज्ञातव्यं सर्वदा गृहम् । विपत्प्रदा विपत्तारा प्रत्यरिः प्रतिकूलदा ॥ ८० ॥ निधनाख्या तु या तारा सर्वथा निधनप्रदा । विवर्ज्यतारकास्वतन्निर्माणमशुभप्रदम् ॥ ८१ ॥ प्रत्यरिस्तूप्रभयदा त्रिविंशर्क्षे तु मृत्युदा । निधनाख्या तु या तारा स्त्रीसुतार्तिप्रदायिनी ॥ ८२ ॥ कुर्वन्नज्ञानतो मोहाद्दुःखभाग् व्याधिभाग्भवेत् । तिथौ रिक्ते दरिद्रत्वं दर्शे गर्भनिपातनम् ॥ ८३ ॥ कुयोगे धनधान्यादिनाशः पातश्च मृत्युदः । वैधृतिः सर्व नाशाय नक्षत्रैक्ये तथैव च ॥ ८४ ॥
भयको देती है और तेईसवें नक्षत्रमें होय तो मृत्युको देती है. निधननामकी जो तारा है वह स्त्री और पुत्रोंको दुःखदायी होती है ॥ ८२ ॥ अज्ञान वा मोहसे इनमें गृहको बनावे तो दुःख और व्याधिका भोगी होता है. रिक्तातिथिमें दरिद्रता और अमावास्यामें गर्भका पात होता है ॥ ८३ ॥ कुयोगमें धन धान्य आदिका नाश और पात मृत्युको देताहै. वैधृति और नक्षत्रकी एकतामें सबका नाश होता है ॥ ८४ ॥