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वि.प्र.
॥१५॥ 1
नता होती है व्ययसे युक्त क्षेत्रके फलमें ध्रुवआदि अक्षरोंको मिलाकर ॥ ७० ॥ और तीनका भाग देकर शेषर्म क्रमसे इन्द्र यम भूमिका स्वामी इनके अंशक होते हैं. इंद्रके अंशमें पदवीकी वृद्धि और महान सुख होता है ।। ७१ ॥ यमके अंशमें निश्चयसे मरण और अनेक प्रकार के रोग शोक होते हैं, राजाके अंशमें धन धान्यकी प्राप्ति और पुत्राकी वृद्धि होती है ॥ ७२ ॥ और राशिकूट आदि संपूर्णकी चिन्ताभी गृहके आर ला म्भमं करे, दूसरी और बारहवीं राशि गृह और गृहके स्वामीके होय तो निश्चयसे दरिद्रता होती है और त्रिकोण (९।५) में सन्तानका || | त्रिभिः शेषे क्रमादिन्द्रयमभूम्यधिपांशकाः । इंद्रांश पदवीवृद्धिमहत्सौख्यं प्रजायते ॥ ७१ ॥ यमांशे मरण नूनं रोगशोकमने
कधा । राजांशे धनधान्याप्तिः पुत्रवृद्धिश्च जायते ॥ ७२ ॥ राशिकूटादिकं सर्व दंपत्योरिख चिन्तयेत । नैःस्वं द्विादशे नूनं ५ त्रिकोणे ह्यनपत्यता ॥ ७३ ॥ पडष्टके नधनं स्याव्यत्ययेन धनं स्मृतम् । यूनस्थिते पुत्रलाभं स्त्रीलाभ च तथैव च ॥ ७ ॥ | जन्मतृतीये च तथा धनधान्यागमो भवेत । दशमैकादशे चन्द्रो धनायुर्बहुपुत्रदः ॥ ७५॥ चतुर्थाष्टमरिष्फस्थो मृत्युपुत्रविना
शदः । त्रिकोणे त्वनपत्यं स्यात्केचिद्वन्धुगृहे शुभम् ॥ ७६ ॥ वदन्ति चन्द्रं मुनयो नैतन्मम मतं स्मृतम् । अश्विन्यादिवयं मेषे सिंह प्रोक्तं मघात्रयम् ॥ ७७॥ अभाव होता है ॥ ७३ ॥ षडष्टक (६८) में धनका अभाव और विपरीत (८।६) में धन कहा है और ह्यून ७ में पुत्र स्त्रीका लाभ होता है है।। ७४ । और जन्मसे तीसरी राशिमें धन धान्यका आगमन होता है, दशवां और ग्यारहवां चन्द्रमा धन आयु और बहुत पुत्रोंको देता है ।। ७५ ॥ चौथा आठवां बारहवां चन्द्रमा मृत्यु और पुत्रोंके नाशको देता है और त्रिकोण (९। ५ ) में सन्तानका अभाव और कोई ॥१५॥ आचार्य त्रिकोणको बन्धु गहमें शुभ ॥७६ ॥ चन्द्रमाको मुनिजन कहते हैं यह मेरा मत नहीं है। अश्विनीसे आदि लेकर तीन नक्षत्र मेषमें और