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आर्योंमें गजका आय श्रेष्ठ कहा है ॥ ६३ ॥ क्षत्रिय और वैश्योंको ध्वजा श्रेष्ठ कहा है यह बृहस्पतिने कहा है, धर्मका आभिलाषी ब्राह्मण धु सिंहायको अवश्य त्याग दे॥६४ ॥ सिंहके आयमें घरमें चण्डता और अल्पसन्तान होती है, ध्वजायमें पूर्णसिद्धि और वृषाय पशुओंकी ॐ वृद्धि देता है ॥ ६५ ॥ गजायमें समस्त सम्पदा बढ़ती है, शेष आय शोक और दुःखके दाता होते हैं, गृहके पिण्डको अर्थात् हाथोंकी संख्याको नौ ९ नौ ९, ६, ८, ३, ८, ८, ७ इनसे गुणते और क्रमसे नाग ८, ७, ९, १२, ८, १२, १५,२७, १२० इनका भागदेनेपर ये पदार्थ ध्वजायः क्षत्रियविशोः प्रशस्तो गुरुरब्रवीत् । सिंहायः सर्वथा त्याज्यो ब्राह्मणेन वृषेप्सुना ॥ ६४॥ सिंहाये चण्डता गेहे अल्पापत्यः प्रजायते । ध्वजाये पूर्णसिद्धिः स्याद् वृपायः पशवृद्धिदः॥६५॥ गजाये संपदां वृद्धिः शेपायाः शोकदुःखदाः। पिण्डे नवाकाङ्गगजवह्निनागाष्टसागरैः ॥६६॥ नागेश्च गुणिते भक्ते क्रमादेते पदार्थकाः । नागादिनवमूर्याष्टभूतिथ्यृक्षख भानुभिः॥६७ ॥ आयो वारोंऽशको द्रव्यमृणमृक्षं तिथियुतिः । आयुश्चाथ गृहेशक्षगृहमैक्यं मृतिप्रदम् ॥ ६८॥ संपूर्णाः शुभदा ह्येते ह्यसंपूर्णास्त्वनिष्टदाः। धिष्ण्ये च वसुभिर्भक्ते व्ययः स्याच्छेषकाङ्कके ॥ ६९॥ धनादिकं गृहे वृद्धय निर्द्धनाय ऋणाधिकम् । व्ययान्विते क्षेत्रफले ध्रुवाद्यक्षरसंयुते ॥ ७० ॥ क्रमसे होते हैं ॥ ६६ ॥ ६७ ॥ आय वार अंशक द्रव्य ऋण नक्षत्र तिथि युति और आयु और गृहके स्वामीका नक्षत्रका और गृह नक्षत्र एक होजाय तो गृह मृत्युका दाता होता है॥६८॥ ये संपूर्ण शुभके दाता और जो असंपूर्ण होय तो अनिष्टको देते हैं और गृहमें ८ आठका ॐ भाग देनेपर जो शेष अंक रहे उसमें व्यय होता है ॥ ६९ ॥ जिस घरमें धन अधिक हो उसमें वृद्धि और जिसमें ऋण अधिक हो उसमें निर्ध