________________
वि. प्र.
॥ १४ ॥
जो जीविका करते हैं उनके गृहोंमें धूम्रकी ध्वजाओंको बनवावे और कोई यह कहते हैं कि म्लेच्छआदि जातियोंमें श्वानकी ध्वजा बनावे ॥ ५६ ॥ वैश्यके गृहमं खरकी ध्वजा श्रेष्ठ है. शेषकुटी आदिमं काककी ध्वजा श्रेष्ठ है और वृष सिंह ध्वज ये प्रासाद पुर और वेश्म इनमें श्रेष्ठ होते हैं ॥ ५७ ॥ गजायमें वा ध्वजायमें हाथियोंका घर शुभ होता है. ध्वजायमें अश्वोंका स्थान और खरायमें और वृषमें ॥ ५८ ॥ गजाय वा वृषध्वजमें पशुओंका स्थान उष्ट्रोंका गृह करवावे तो शुभदायी होता है ॥ ५९ ॥ शय्याके स्थान में वृषराशि और पीठ खरो वैश्यगृहे शस्तो ध्वांक्षः शेषकुटीषु च । वृपसिंहध्वजाश्वापि प्रासादपुरवेश्मसु ॥ ५७ ॥ गजाये वा ध्वजाये वा गजानं सदनं शुभम् । अश्वालयं ध्वजाये च खराये वृषभेऽपि वा ॥ ५८ ॥ उष्ट्राणां मंदिरं कार्य गजाये वा वृपध्वजे । पशु सद्म वृषाये च ध्वजाये वा शुभप्रदम् ॥ ५९ ॥ शय्यासु वृषभः शस्तः पीठे सिंहः शुभप्रदः । अमंत्रच्छत्रवस्त्राणां वृपाये वा ध्वजेऽपि वा ॥ ६० ॥ पादुकोपानहौ कार्यों सिंहायेऽप्यथवा ध्वजे । स्वर्णरूपादिधातूनामन्येषां तु ध्वजः स्मृतः ॥ ६१ ॥ ब्राह्मणेषु ध्वजः शस्तः प्रतीच्यां कारयेन्मुखम् । सिंहश्च भूभृतां शस्त उदीच्यां च मुखं शुभम् ॥ ६२ ॥ विशां वृपः प्राग्वदने शूद्राणां दक्षिणे गजः । सर्वेषामेव चायानां ध्वजः श्रेष्ठतमो मतः ॥ ६३ ॥
. आसन) के स्थान में सिंह शुभदायी होते हैं. पात्र छत्र वस्त्र इनका स्थान वृषाय वा ध्वज में श्रेष्ठ होता है ॥ ६० ॥ पादुका ( खडाऊँ ) और | उपानह ये दोनों वृषाय वा ध्वजमें करने सुवर्ण और रौप्यआदि धातु और अन्य स्थानमें ध्वज श्रेष्ठ कहाहै ॥ ६१ ॥ ब्राह्मणोंमें ध्वज श्रेष्ठ होता है और ब्राह्मण पश्चिमदिशाको गृहका मुख बनवावे क्षत्रियोंको सिंह श्रेष्ठ कहाहै और उत्तरको गृहका मुख श्रेष्ठ कहाहै ॥ ६२ ॥ वैश्योंको वृष श्रेष्ठ कहा और पूर्वाभिमुख ग्रह शुभ होता है और शूद्रोंको गजाय और दक्षिणाभिमुख गृह श्रेष्ठ कहे हैं और सब
भा. टी. अ. २
॥ १४ ॥