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ज्येष्ठमें मृत्युको प्राप्त होता है ॥ १७ ॥ आषाढ में भृत्य और रत्नोंको ओरे पशुओंके नाशको प्राप्त होता है. श्रावणमें मित्रके लाभको और भाद्रपद में हानिको प्राप्त होता है ॥ १८ ॥ आश्विनमासमें युद्धको कार्तिकमें धन धान्यको, मार्गशिर में धन की वृद्धि, पापमें चोरसे भयको प्राप्त होता है ॥ ॥ १९ ॥ मात्रमासमें अग्निका भय, फाल्गुन में लक्ष्मी और वंशकी वृद्धिको प्राप्त होता है, मेषके सूर्यमें गृहका स्थापन होय तो शुभदायी होता है ॥ २० ॥ वृषके सूर्य में धन की वृद्धि, मिथुन के सूर्यमें मरण, कर्कके सूर्यमें गृह सुखका दाता, सिंहके सपने नृत्योंकी विशेष आषाढे भृत्यरत्नानिपशुवर्जमवाप्नुयात् । श्रावणे मित्रलाभन्तु हानिं भाद्रपदे तथा ॥ १८ ॥ युद्धं चैवाश्विने मासि कार्तिके धनधान्यकम् । धनवृद्धि गिशीर्ष पौषे तस्करतो भयम् ॥ १९ ॥ माघे त्वग्निभयं विन्द्यालक्ष्मीवृद्धिश्व फाल्गुने | गृहसंस्थापन सूर्ये मेपस्थे शुभदं भवत् ॥ २०॥ वृपस्थे धनवृद्धिः स्यान्मिथुने मरणं भवेत् । कर्कटे शुभदं प्रोक्तं सिंहे भृत्यविवर्द्धनम् ॥ २१ ॥ कन्यारोगं तुला सौख्यं वृश्विके धनधान्यकम् । कार्मुके च महाहानिर्मकरे स्याद्धनागमः ॥२२॥ कुम्भे तु रत्नलाभः स्यान्मीने स्वनं भयावहम् । चापमी ननृयुवकन्या मासा दोषावहाः स्मृताः ॥२३॥ ज्येष्ठेोर्जमाघसिंहाख्याः सौरमाने तु शोभनाः । मासे तपस्ये तपसि माधवे नभसि त्विषे ॥ २४॥उर्जे च गृहनिर्माणं पुत्रपौत्रधनप्रदम् । विषिद्धेष्वपि कालेषु स्वानुकूल शुभ दिने ॥ २५ ॥ कर वृद्धि होती है ॥ २१ ॥ कन्यामें रोग, तुला सुख, वृश्चिक में धन धान्य, धनुषमें महाहानि, मकरमें धनका आगम होता है ॥ २२ ॥ कुम्भमें रत्नों का लाभ और मीनमें गृहका आरंभ करे तो भयानक स्वप्न होते हैं और धन मीन मिथुन कन्याके सूर्य ये मास दोष के दाना कहे हैं ॥ २३ ॥ ज्येष्ठ कार्तिक माघ और सिंह ये संक्रांतिके मानसे शोभन कहे हैं, फाल्गुन माघ वैशाख श्रावण आश्विन ॥ २४ ॥ और कार्तिकमें गृहका