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वि. प्र. ॥ १२ ॥
बनाना पुत्र पौत्र और धनको देता है. निषिद्धकालोंमें भी अपने अनुकूल शुभ दिनमें ॥ २५ ॥ तृण काष्ठ गृहके आरम्भ में मासका दोष नहीं कहा है और पत्थर ईंट आदिके घरोंको निन्दितमास में न करावे ॥ २६ ॥ निंदित मास में भी चंद्रमाके माससे गृह शुभदायी होना है. गृह गोचर और अटaajiसे वामवेधकी विशेषकर चिन्ता करे ॥ २७ ॥ इस गृहारम्भ कर्ममें भी दशा और अन्तर्दशाकी विशेषकर चिन्ता करे. गुरु और शुक्र के बलमें ब्राह्मण, सूर्य मंगलके बलम क्षत्रिय ॥ २८ ॥ सोम और बुधके बलमें वैश्य, शनैश्वरके बलमें शुद्रवणांके क्रमसे वर्णके तृणदारुगृहारंभ मासदोषो न विद्यते । पाषाणेष्ट्यादिगेहानि निंद्यमासे न कारयेत् || २६ || निन्द्यमासेऽपि चन्द्रस्य मासेन शुभ गृहम् । गोचराष्टकवर्गाभ्यां वामवेधं विचिन्तयेत् ॥ २७ ॥ दशान्तरदशादीनां विचारश्चात्र कर्मणि । गुरुशुक्रब विप्रान्सूर्यभूमिजयोस्तथा ॥ २८ ॥ शशिसौम्यवले सौरे वर्णानुक्रमपूर्वशः । गृहारम्भं प्रकुर्वीत वर्णनाथवले सति ॥ २९॥ सर्वेषामपि वर्णानां सूर्यचन्द्रबलं स्मृतम् । विषमस्थे खौ स्वामी पीड्यते गृहिणी विधौ ॥ ३० ॥ शुक्रेण पीड्यते लक्ष्मी जवेन सुखसम्पदः । बुधेन पुत्रपौत्राश्च भौमेन भ्रातृबान्धवाः ॥ ३१ ॥ सौरेण दासवर्गाश्च पीड्यन्ते नात्र संशयः । विशेषेण तु सूर्यस्य बले प्रोक्तं गृहं बुधः ॥ ३२ ॥
भा. टी.
अ. २
ॐ नाथका बल होनेपर गृहका आरंभ करे ।। २९ । सूर्य चन्द्रमाका बल सब वर्णोंको कहा है. विषम राशिका सूर्य होय तो स्वामीको और चंद्र दें माका बल होय तो खीको पीडा होती है ॥ ३० ॥ विषमराशिके शुक्रसे लक्ष्मीका नाश और जीव (बृहस्पति ) से सुखकी संपदाओंका नाश,
अ. बुधसे पुत्रपौत्रोंका नाश, मंगलसे भाई बाँधवोंको पीडा होती है ॥३१॥ शनैश्वर से दासवगको पीडा होती है, इसमें संशय नहीं, विशेषकर सूर्यके ॥ १२ ॥