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________________ स्थित होय तो उनके ग्रहों के विरोध दोष होता है॥६७ ॥ घरसे उत्तरदिशामें द्विगुण भमि और पूर्वमें घरके समान भूमि और पश्चिममें|| तिगुनी भूमि और दक्षिणमें एक कोशभर भूमि रिक्त (खाली) श्रेष्ठ कही है । ६८ ॥ जो घर मेखलापर स्थित हो जो द्वारके संमुख हो वह घर यदि सौम्य और उत्तरदिशामें स्थित होय तो शुभ नहीं कहा ॥ ६९ ॥ दश हाथकी वा घरके चतुर्थाशकी मेखला होती है. शुभका अभि लाषी पुरुष नगरसे दूनी भूमिको त्याग दे ॥ ७० ॥ अन्यथा नगरको बनवावे तो उसमें वेधको देखे जिस मार्गसे मरेहुए मनुष्य यमलोकको उत्तरे द्विगुणा भूमिः समा भूमिश्च पूर्वके । पश्चिमे त्रिगुणा भूमिः क्रोशमेकं तु दक्षिणे ॥ ६८ ।। मेखलासंस्थितं गेहं द्वारस्या भिमुखं च यत् । तद्गृहं न शुभं प्रोक्तं यदि सौम्योत्तरे स्थितम् ॥६९॥ दशहस्ता मेखला स्याच्चतुर्थाशेन वा गृहात् । नगराद् द्विगुणा भूमिः परित्याज्या शुभेप्सुना ॥७०॥ नगरं कारयेच्चान्यत्तत्र वेधं विनिर्दिशेत् । यस्मिन्मार्गे जनास्सर्वे मृता यान्ति पितृ क्षयम् ॥ ७१ ॥ मार्गः स एव विज्ञेयः शेषा देशांतरं प्रति। गृहभित्तिषु ये लग्रास्ते गृहा गृहिणां सदा ॥७२॥भयदाः पुत्रसन्ताप कारकास्तत्र कारयेत् । यथा याम्यं तथा वायु यथा वायुं तथा उदक् ॥७३॥ यथा उदक्तथा पूर्व फलसाम्यं प्रकीर्तितम् । आक प्रयेद्यथा चापमारुह्य भवनं नरः॥७॥विलोकयति बाणेन लक्ष्यवत्तं भिनत्ति सः । मूलात्तदीशकाष्ठान्तं जलेनापूरित स्थलम्७५॥ जाते हैं ॥ ७१ ॥ वही मार्ग जानना. शेष मार्ग देशांतरोंक होते हैं. जो गृहस्थियोंके घर घरोंकी भित्तियोंसे मिलेहुए हैं। ७२ ॥ वे भयके यू दाता और पुत्रोंको दुःखके दाता होते हैं इससे जैसा घर याम्य (दक्षिण) में बनावे वैसाही वायु (पश्चिम) में बनावे, जैसा वायुदिशामें हो || वैसाही उत्तरदिशामें बनवावे ॥७३॥ जैसा उत्तरमें हो तैसाही पूर्वमें बनवावे तो साम्य (इकसा) फल कहा हे. जसे-मनुष्य भवन पर पू चढकरें धनुष्यका आकर्षण (खींचना) करसके ॥ ७४ । बाहिरके मनुष्योंको देखसके वा वाणसे लक्ष्यवालेका भेदन करसके और मूलसे
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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