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इसके अनन्तर गृहोंके वेधनिर्णयको कहता हूँ-अन्धक, रुधिर, कुब्ज, काण, बधिर ॥ १॥ दिग्वक, चिंपिट, व्यंगज, मुरज, कुटिल, कुट्टक, सुप्त, मा. शंखपालक ॥२॥विकट, कंक, कंकर यह पूर्वोक्त सोलह प्रकारका वेध स्थान में होता है. जो घर छिद्रोंसे हीन हो उसमें अन्धक भेद होता है. जो विच्छिद्र दिशाओमें हो वह काण होता है ॥ ३ ॥ जिसके अंग हीन हों वह कुब्जक होता है. जिसका द्वार पृथिवीमें हो वह बधिर होता था. है. छिद्र विकीर्ण (जहां तहां) हों उसे दिग्वक और अविपद्दतको रंध्र कहते हैं॥४॥ तुंग ऊँचाई) से जो हीन हो वह चिपिट होता है. जिसमें
अतःपरं प्रक्ष्यामि गृहाणां वेधनिर्णयम् । अन्धकं रुधिरञ्चैव कुब्ज काणं बधीरकम् ॥ १ ॥ दिग्वत्रं चिपिटञ्चैव व्यङ्ग मुरज तथा । कुटिलं कुट्टकञ्चैव सुप्तञ्च शंखपालकम् ॥२॥ विघटञ्च तथा कई कैङ्करं षोडशं स्मृतम् । अन्य छिद्रहीनञ्च विच्छिद्र दिशि कानकम्॥३॥ हीनाङ्गं कुब्जकञ्चव पृथ्वीद्वारं बधीरकम् । रन्ध्र विकोण दिग्वत्रं रुधिरञ्चाविपद्गतम्॥४॥तुङ्ग-हीनञ्च चिपिट व्यङ्गं चानर्थदर्शनम् । पाश्र्योन्नतं च मुरज कुटिलं तालहीनकम् ॥ ५ ॥शंखपाल जंवहीनं दिग्बकं विकटं स्मृतम् । पार्थहीनं तथा कंकं कैङ्करं च हलोनतम् ॥६॥ इत्यते अधमाः प्रोक्ता वजनीयाः प्रयत्नतः । अन्धके रोगमतुलं रुधिरेऽजीसारज भयम् ॥ ७॥ कुब्जे कुष्टादिरोगः स्यात् काणेऽन्धत्वं प्रजायते । पृथ्वीद्वारे सर्वदुःखं मरणं वा प्रजायते ॥ ८॥ अनर्थ दीखें उसे व्यंग कहते है, जो पाश्चामे उन्नत (ऊंचा) हो वह मुरज होता है. जो तालसे हीन हो वह कुटिल होता है ॥५॥ जो जंघासे || काहीन हो वह शंखपाल कहाता है. जो दिशाओं में वक्र (टेढा) हो वह विकट कहाता है. जिसमें पार्श्वभाग न हो उसे कंक कहते हैं. जो हलके के समान उम्रत हो उसे कैंकर कहते हैं॥६॥ ये पूर्वोक्त घर अधम कहे हैं. ये सब यत्नसे वर्जने योग्य हैं. अन्धक घरेम अतुल रोग होता है. रुधिर
नामके घरमें अतीसार रोगका भय होता है | कुब्जघरमें कुष्ठ आदि रोग होते हैं, काणे घरमें अन्धे मनुष्य पैदा होते हैं, पृथ्वीद्वार में सब दुःख