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वा मरण होता है ॥ ८ | दिग्वक्रमें गर्भका नाश होता है. चिपिट में नीचोंकी संगति, व्यंगघरमें व्यंगता ( अंगहीनता) मुरजमें धनका अभाव, कुटिलमें क्षय (नाश) होता है ॥ ९ ॥ कुट्टक में भूतदोष होता है. सुप्तमें गृहके स्वामीका मरण होता है. शंखपालमें कुत्सित रूप होता है. विकटमें सन्तानका नाश होता है ॥ १० ॥ कंकघर में शून्यता, कैंकर में खोकी हानि और प्रेप्यता ( दासभाव ) होती है. कुलिश (बिजली) से तोडा हुआ काष्ठ जो घर के भीतर होय तो मरण होता है ॥ ११ ॥ अग्निसे दग्ध काष्ठ घरमें होय तो निर्धनता होती है संता दिग्व गर्भनाशः स्याच्चिपिटे नीचसतिः । व्यङ्गे च व्यङ्गता नैःस्वं मुरजे कुटिले क्षयः || ९ || कुट्ट के भूतदोपः स्यात्सुते गृहपतेः क्षयः । शङ्खपाले कुरूपं स्याद्विकटेऽपत्यनाशनम् ॥ १० ॥ कङ्के शून्यं कैङ्करे च स्त्रीहानिः प्रेष्यता भवेत् । कुलिशेनाहते दारौ गृहान्तस्थे मृतिर्भवेत् ॥११॥ वह्निदग्धे निर्धनत्वमपत्यादिक्षयो भवेत् । विरूपा जर्जरी जीर्णा अग्रदीनाऽर्द्धदग्धिताः॥ १२ ॥ अङ्गहीना छिद्रहीना छिद्रयुक्ताश्च वर्जयेत् । वक्रे च परदेशः स्यादुष्कार्द्ध स्वामिनो भयम् ॥ १३ ॥ व्यङ्गे रोगभयं घोरं सर्व च्छिद्रे मृतेर्भयम् । पाषाणान्तर्गतं गेहं शुभं सौख्यविवर्द्धनम् ||१४|| गेहमध्यस्थित यच्च सर्वदोषकरं भवेत् । विस्तीर्ण मानं यह तदूर्ध्व परिकीर्तितम् ॥ १५ ॥ शेषाश्चैव त्रिभागं तु तद्गृहं चोत्तमं स्मृतम् । तुङ्गमूनाधिकं रोगभयं करोति विस्तृतम् ॥ १६ ॥ नका नाश होता है. विरूप, जर्जर, जीर्ण, अग्रभागसे हीन, अर्द्धदग्ध ॥ १२ ॥ अंगसे हीन, छिद्रहीन, छिद्रसे युक्त जो काष्ठ हों उनको वर्ज दे. वक्रकाष्ठ होय तो परदेशमें वास होता है, अर्द्धशुष्क में स्वामीको भय होता है ॥ १३ ॥ व्यंगमें घोर रोगका भय होता है. सर्वच्छिद्र में मृत्युक्का भय कहा है, जो घर पाषाणोंके अन्तर्गत है वह शुभका दाता और सुखका बर्द्धक होता है ॥ १४ ॥ गृहके मध्य भागमें स्थित पाषाण होय तो सम्पूर्ण दोषको करता है. जो घर विस्तीर्ण मान है उसको ऊर्ध्व कहते हैं ॥ १५ ॥ जिसकी ऊँचाई घरकी भूमिके त्रिभागकी हो वह घर उत्तम