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________________ बलिको ग्रहण करो और तृप्त होकर मेरे शल्यको हरो. आठ कुंभोंके जलसे उस गृहोंको सींचे ॥ ७३ ॥ तीन प्रकारके भेद, उत्पात और दारुण (भयानक) ग्रहके उत्पात ये सब उस घरमें नष्ट हो जाते हैं जिसमें शल्यका उद्धार किया हो ॥ ७४ ॥ आचार्यको गौ दे, ऋत्विजोंको||| का दक्षिणा दे, दान और मानसे ज्योतिषी और स्थपतिको संतुष्ट करके ॥ ७ ॥ अन्योंको भी अपनी शक्तिके अनुसार दक्षिणासे विधिपूर्वक पूजन कर दीन अंधे कृपण और विशेषकर लिंगी अर्थात् ब्रह्मचारी वा संन्यासी ॥ ७६ ॥ गायक और अन्य नट आदिकोंको दक्षिणा दे| भेदत्रय तथोत्पाता ग्रहपीडाश्च दारुणाः । ते सर्वे नाशमायान्तु शल्योद्धारे कृते गृहे ॥७४॥ आचार्याय च गां दद्यादत्विग्भ्यो । दक्षिणां तथा । दानमानेन संतोष्य दैवज्ञ स्थपति तथा ॥७९॥ अन्यांश्च विधिवत्पूज्य दक्षिणाभिः स्वशक्तितः । दीनान्धकृपणे ॥ भ्योऽपि लिंगिभ्योऽपि विशेषतः ॥७६॥ गायकेभ्यस्तथान्यभ्यो नटेभ्यो दक्षिणों ततः । दद्यात्स्ववेश्मनि यथाशक्ति विपाश्च भोजयेत् ॥७७ ॥ भुञ्जीत बन्धुभिस्साई विहरेच्च सुखं ततः। एवं यः कुरुते विप्राः शल्योद्धारं स्ववेश्मनि ॥ ७८ ॥ सुखवान् | | दीर्घजीवी स्यात्पुत्रान् पौत्रांश्च विन्दति ॥७९॥ इति वास्तुशास्त्रे शल्योद्धारनिर्णयो नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥ *अपनी शक्तिके अनुसार अपने घरमें ब्राह्मणोंको भोजन करावे ॥ ७७ ॥ फिर बन्धुओंके संग भोजन करे उस मन्दिरमें सुखसे विहार करे. हे ब्राह्मणो ! इस प्रकार जो मनुष्य अपने घरमें शल्योद्धार करता है ॥ ७८ ॥ वह सुखका भागी और दीर्घ जीवी होता है पुत्र और पौत्रोंको प्राप्त होता है ॥ ७९ ॥ इति पहितमिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतिसहिते वास्तुशास्त्रे शल्योद्धारनिर्णयो नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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