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________________ वि.प्र. ॥ १२ ॥ और वादित्रके शब्दको करके उस गर्तको मिट्टीसे पूर्ण कर दे ॥ ६६ ॥ शिलाके कुम्भका हृदयपर स्पर्श करके इन मन्त्रोंको उच्चारण करे हे। वास्तुपुरुष हे भूमिशय्यामें रमणके कर्ता हे प्रभो ! आपको नमस्कार है ॥ ६७ ॥ मेरे घरको धन और धान्य आदिसे समृद्ध (पूर्ण) सब कालमें करो. हे नामनाथ हे शल्यके उद्धार करने में समर्थ ! आपको नमस्कार है ॥ ६८ ॥ तू वास्तुपुरुष है और विश्वका धारण कर्ता है इससे प्रजाओं का हित कर. हे पृथिवी ! तू लोकोंको धारण करती है हे देवी! तुझे विष्णुने धारण किया है. हे देवी! तू मुझे धारण कर और आस हृदि कृत्य शिलाकुम्भं मन्त्रानेतानुदीरयेत् । नमस्ते वास्तुपुरुष भूमिशय्यारत प्रभो ॥ ६७ ॥ मद्गृह धनधान्यादिसमृद्धं कुरु सर्वदा । नागनाथ नमस्तेऽस्तु शल्यस्योद्धरण क्षम ॥६८॥ वास्तुरूपो विश्वधारी प्रजानां हितमावद । पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता । त्वञ्च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥ ६९ ॥ गणपत्यादयो लोका देवा दिक्पालकास्तथा । सायुधाः सगणोपेताः शुद्धं कुर्वन्तु मे गृहम् ॥ ७० ॥ इति मन्त्रान्पठित्वा तु दद्याद्वाह्यबलिं ततः । राक्षसानां पिशाचानां गुह्य कोरगपक्षिणाम् ॥ ७१ ॥ भूतानां च तथा यक्षगणानां ग्रामवासिनाम् । पूर्वोक्तरागमैमैत्रैर्विधानेन विधानवित् ॥ ७२ ॥ संगृह्णन्तु बलिं सर्वे तृप्ताः शल्यं हरन्तु मे । कुम्भाष्टकानान्तु जलैस्तद्गृहं चाभिषिंचयेत् ॥ ७३ ॥ नको भी पवित्र कर ॥ ६९ ॥ गणपति आदि लोकपाल और देवता दिक्पाल ये सब आयुध ( शस्त्र) और गणों सहित होकर मेरे घरको शुद्धकरो ॥ ७० ॥ इन मन्त्रोंको पढकर फिर बाले दे वह बाल राक्षस पिशाच गुह्यक उरग पक्षी इनको दे ॥ ७१ ॥ भूतोंको और यक्षोंके गणों को, ग्रामके वासी देवताओंको विधिका ज्ञाता आचार्य पूर्वोक्त आगमके मन्त्रोंसे उक्त बलिको दे ॥ ७२ ॥ यह कहे कि सम्पूर्ण देवता मा. टी. अ. १२ ॥ ९२ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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