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________________ भागे चा भन्ने त्वं भद्रदा ग्रंथवि त्वां सर्वाळल्यचक्षत पूर्ण सुनेरगिर सुन्दर मुहूर्तमें शिलाके स्थापनको करे ॥ ५९ ॥ उसके पश्चिमभागमें महाकुम्भके शिरके ऊपर बडे दीपकको रक्खे उसके पूर्वभागमें शल्यक मन्त्रोंको पढे ।। ६०॥ हे नन्दे ! तू आनन्द कर । हे वासिष्ठे ! हे प्रजाके हितकारिणी ! इस गृहके मध्यभागमें तू टिक और सब कालमें सुखकी का दाता हो ॥ ६१॥ हे भद्रे! तू पुरुषोंको भद्र (कल्याण) की दाता है हे काश्यपनंदिनि ! तू अतुल आयु आरोग्यको कर और संपूर्ण शल्योंका निवारण कर ॥ ६२ ॥ हे जये! तु भार्गवकी पुत्री है इससे प्रजाओंके हितको कर । हे देवी ! आपका यहां स्थापन करता हूं तू सम्पूर्ण तत्पश्चिमे महादीपं महाकुम्भशिरोपरि । स्थापयेत्पूर्वभागे च शल्यमन्त्रानुदीरयेत् ॥६० ॥ नन्दे नन्दय वासिष्टे वसुभिश्च हित प्रजे। तिष्टाप्यस्मिन्गृहान्ते त्वं सर्वदा सुखदा भव ॥६॥ भद्रे त्वं भद्दा पुंसां कुरु काश्यपनन्दिनि । आयुरारोग्यमतुलं सर्वशल्यानिवारथ ॥६२॥ जये भार्गवदायादे प्रजानां हितमावह । स्थापयाम्यत्र देवि त्वां सर्वाञ्छल्यानिवारय ।। ६३ ॥ रिक्ते त्वं रिक्तदोषने सिद्धिदे सुखदे शुभे। सर्वदा सर्वदोषघ्ने तिष्ठास्मिन्नत्रिनंदिनि ॥ ६४ ॥ अव्यंगे चाक्षते पूर्णे मुनेरंगिरसः सुते । इष्टके त्वं प्रयच्छेष्ट शुभञ्च गृहिणां कुरु ॥६५॥ ताम्रकुम्भश्च निक्षिप्य शिलां दीपं तथैव च । गीतवादिवनिर्घोष कृत्वा तं पूरयेन्मृदा ॥ ६६॥ शल्योंका निवारण कर ।। ६३ ॥ हे रिक्ते ! तू रिक्त दोषको नाशकरनेवाली है. हे सिद्धिकी दाता और सुखदाता हे शुभे हे सबकालमें सब दोषोंकी नाशक हे अत्रिकी नन्दिनी (पुत्री)! इस गृहमें तू टिक ॥ ६४॥हे अव्यंगे अर्थात् नाशरहिते हे अक्षते हे पूर्णे हे अंगिरामुनिकी पुत्री हे इष्टकेतू इष्टको दे और गृहस्थियोंके शुभको कर ॥ ६५ ॥ तांबेके कुम्भको गर्तमें डारे और शिला दीपको भी उसीमें गेरकर गीता
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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