________________
वि. प.
प. पंचामृत, पंचपल्लव, पांच त्वचा और पांच कषाय इन सबको उस कलशमें डार दे ॥ ५२ ॥ तीन मधु और सप्तधान्य जो पारेसे युक्त हों उनको
भी डारे उसमें गणेश आदि देवता और लोकपालोंका आवाहन करके ॥ ५३ ॥ घरमें धनके पति-कुबेर और वरुणको स्थापन करके नागोंके नायक (शेष) का स्थापन करे. पूर्वोक्त विधिसे वेदके मंत्रोंसे आवाहन करके ॥ ५४॥ आगमके मंत्रोंसे, पुराणोंमें पढेहुए मंत्रोंसे अष्टशत ८०० गायत्रीसे और अष्टशत ८०० व्याहृतिसे ॥ ५५ ॥ शतवार त्रीणिपदा० इस मंत्रसे वा एकशतवार तद्विप्रासो• इस मंत्र और अतो पञ्चामृत तथा पञ्चपल्लवान्पञ्च वा त्वचा । कषायान् पञ्च वा तस्मिन् कलशे तु विनिःक्षिपेत् ॥५२॥ त्रिमधु च तथा सप्त धान्यान्पारदसंवृतान् । तत्रावाह्य गणेशादील्लोकपालस्तिथैव च ॥५३॥ वरुणं च गृहे स्थाप्य रायकं नागनायकम् । आवाह्य वेदमन्त्रैश्च पूर्वोक्तेन विधानतः ॥५४॥ आगमोक्तैश्च मन्त्रैश्च मन्त्रैः पुराणसम्भवैः । गायत्र्याऽष्टशतेनैव व्याहत्याष्टशतेन वा ॥५५॥ त्रीणिपदेति शतधा तद्विप्रास इति वा तथा । अतो देवा इति तथा दिव्यमन्त्रैः शतत्रयम् ॥५६॥ हुत्वाग्नौ विधिवद्विप्रा वास्तुहोमं ततश्चरेत । अष्टाधिकं तथा होम गृहहोम तथैव च ॥५७ ॥ गणपत्यादिम लोकपालानां होममाचरेत् । दिक्पालानां
तथा क्षेत्रपालस्यापि विशेषतः॥५८॥ दिव्यान्तरिक्षभौमानां होम मन्त्रञ्च कारयेत् । सुलग्ने सुमुहूर्ते तु शिलास्थापनमाचरेत् ५९ ॐ देवा० यह जो दिव्यमंत्र है इससे तीनसौ ३०० वार ।। ५६ ॥ विधिसे होमको करके हे ब्राह्मणो ! उसके अन्यदेवताओंके निमित्त वास्तुहोमको
करे और आठ अधिक शत १०८ होमको और तिसी प्रकार गृहहोमको करे ॥ ५७ ॥ प्रथम गणपतिके निमित्त होमको करे. फिर लोकपाल दिक्पाल और विशेषकर क्षेत्रपालके निमित्त होमको करे ॥ ५८॥ दिव्य अंतरिक्ष भूमि इनकेभी होम मंत्रोंसे होमकरे फिर सुंदर लग्न और