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कटिपर्यंत भागमें करता है ।। १५ ।। नैर्ऋत्य दिशामें प्रश्न करे तो सार्द्ध हाथके अधोभागमं अर्थात डेढ हाथ नीचे श्वानके अस्थिको जाने, उसमें | बालकोंकी मृत्यु होती है ॥ १६ ॥ पश्चिम दिशामें प्रश्न होय तो शिव ( लोमडी) में शल्य (दुःख ) होता है. सार्द्ध हाथ के प्रमाणसे होता है वह स्थान स्वामीके प्रवासका कारण होता है ॥ १७॥ वायव्य दिशामें प्रश्न होय तो चार हाथके नीचे मनुष्यांके शल्य है उसको भली प्रकार उद्धार करे. बुद्धि नैर्ऋत्यां दिशितः प्रश्रे सार्द्धहस्तादधस्तले । शुनोऽस्थि जायते तत्र डिम्भानां जनयेन्मृतिम् ॥ १६ ॥ प्रने च ई. पू. अ. पश्चिमायां तु शिवशल्यं प्रजायते । सार्द्धहस्ते प्रवासाय सदनं स्वामिनः पुनः ॥ १७ ॥ वायव्यां दिशि तु प्रश्ने नराणां वा चतुष्करे । शल्यं समुद्धरेद्धीमान् करोति मित्रनाशनम् ॥ १८ ॥ उत्तरस्यां दिशि प्रश्ने गर्दभास्थि न संशयः। सार्द्धहस्तचतुष्के च पशुनाशाय तद्भवेत् ॥ १९ ॥ ईशानदिशि यः प्रश्नो गोशल्यं सार्द्धहस्ततः । | वा. प. नै. तच्च गोधननाशाय जायते गृहमेधिनः ॥ २० ॥ मध्यकोष्ठे च यः प्रश्नो वक्षोमात्रादधस्तदा । केशाः कपालं मर्त्यास्थि भस्म लोहं च मृत्यवे ॥२१॥ मंत्रश्च - ॐ ह्रीं कूष्माण्डि कौमारि मम हृदये कथय कथय ह्रीं स्वाहा ॥ एकविंशतिवारमनेन मन्त्रेणा भिमंत्र्य प्रश्नमानयेत् । अत्र दिशः सूर्योदयाद्गुणनीयाः ॥ जलान्तं प्रस्तरान्तं वा पुरुपान्तमथापि वा ॥ २२ ॥
उ. म. द.
मान् मनुष्य उसमें मित्रके नाशको जाने ॥ १८ ॥ उत्तर दिशामें प्रश्न होय तो साढे चार हाथपर गर्दभके अस्थिको जाने. वह पशुओंके नाशको कर ता है ||१९|| ईशान दिशामें प्रश्न होय तो सार्द्ध हाथपर || गौके शल्यको जाने और वह गृहस्थीके गोधनको नष्ट करता है ॥ २० ॥ मध्यकोष्ठके विषे जो प्रश्न होय तो वक्षः (छाती) के नीचे के प्रमाणसे केश कपाल मनुष्यके अस्थि लोहा ये जानने. ये मृत्युके कर्त्ता होते हैं ॥ २१ ॥ मन्त्र यह
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