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वा भूकम्पसे दूषित हो ॥ ३१ ॥ कोणका नक्षत्र राहुसे युक हो वा ग्रहण उत्पानसे दूषित होय तो ऐसे मुहूर्नमें यथार्थ रोतिसे विधिपूर्वक शास्त्रोक्त शांति करनी ॥३२॥ उस पुरमें पताकाओंसे अलंकृत मण्डपको बनवावे. अष्ट कुम्भोंको वहां सर्वोषधिसे युक्त करे ॥३३ ॥ सर्वबीज, पंचरत्न तीर्थ के जलोंसे पूरित करे प्रथम घटमें भूमिका आवाहन करे दूसरे घटमें नागराजाका आवाहन करे ॥ ३४ ॥ तीसरमें कोटपालका चौधे घटमें स्वामीका आवाहन करे, पांचवेमें वरुणका, छठेमें रुद्रका आवाहन करे ॥ ३५ ॥ सातवेंमें सातमातृकाओंसे युक्त चण्डिका देवीका आवाहन कोणभे राहुणा युक्ते ग्रहणोत्पातदूपिते । तत्र शांतिः प्रकर्तव्या यथावदिधिनोदिता ॥ ३२ ॥ तत्पुरे मण्डपं कुर्यात् पताकाभिर लंकृतम् । अष्टकुम्भस्तित्र कुर्यात्सर्वोपधिभिरन्वितान् ॥ ३३ ॥ सर्वबीजः पञ्चरत्नस्तीर्थतोयश्च पूरितान् । भूमि चावाहयेत्पूर्व द्वितीये नागनायकम् ॥ ३४ ॥ तृतीये कोटपालं च स्वामिनञ्च चतुर्थके । पञ्चमे वरुणं चैव पष्ठे रुद्रं तथैव च ॥ ३५॥ सप्तमे चण्डिका देवी मातृभिः सप्तभियुताम् । अष्टमे सुग्नाथं च तत्तन्मत्रैश्च पूजयेत् ॥ ३६॥ वास्तुपूजां ततः कुर्याद गृहमण्डलगान् ग्रहान् । गन्धैः पुष्पैस्तथा धूपै-पैः कर्पूरसंभौः॥ ३७॥ नैवद्यश्चापि भूयिष्ठैः फेणिकैः पूरिकादिभिः । शष्कुलीभिस्सखजूंरै लड्डुकर्मोदकैस्तथा ॥ ३८ ॥ नानाविधैः फलेश्चापि विधिवत्तोषयेत्सुरान् । द्वाराग्रे भैरवं देव विधिवत्पूजयेत्ततः ॥३९॥ करे, आठवेंमें सुरनाथ (इन्द्र) का आवाहन करे इन सबका तिस २ के मन्त्रोंसे पूजन करे ॥३६॥ फिर वास्तुपूजाको करे. ग्रहमण्डलके मध्यमें जो ग्रह हैं उनका गन्ध पुष्प धूप दीपक और कपूरके धूपदीपोंसे ॥ ३७ ॥ नैवेद्य और अधिक जो फेणिक पूरीआदि और शकुली खजूर लड्डू और मोदक इनसे पूजन करे ॥ ३८॥ नाना प्रकारके फलोसे विधिपूर्वक देवताओंका संतोष करे, फिर द्वारके आगे विधिपूर्वक भैरवदेवका