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भा. टी.
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वनाया हो वह धन्य होता है तीन वृक्षोंका काष्ठ जिसमें लगाहो वह पुत्रोंकी वृद्धिका दाता कहा है ॥ ८५ ॥ चार वृक्षोंसे धन और यश होता है और पांच वृक्षोंके काष्ठ लगानेसे मरण होता है. छ: सात वृक्षोंके काष्ठसे रचेहुपमें निश्रयसे कुलका नाश होता है ॥ ८६ ॥ वृक्षोंके || शिर और मूलको क्रमसे अग्रभाग और पाद कहते हैं. विना वनके चन्दनमें तो जिस भागमें मूल है उसी भागमें शिर होता है॥८७ ॥ भो ब्राह्मणो ! यह मैं शयन और आसनका लक्षण कहा और भंगमें भी दोष कहे और स्वामिसहित भंगमें भी दोषोंका वर्णन किया ॥ ८८॥
अर्थ यशश्चतुर्भिश्च पञ्चत्वं पञ्चभिः स्मृतम् । षट्सप्तरचिते काठे कुलनाशो भवेध्रुवम् ॥८६॥ शिरो मूलं च वृक्षाणामये पादाः प्रकीर्तिताः । अनारण्ये चन्दने तु यतो मूलं ततः शिरः॥८७॥इति प्रोक्तं मया विप्राः शयनासनलक्षणम् । भने च दोषाः कथिताः स्वामिना सहितेन च ॥८८॥ पादभने मूलनाशमरणो धनसंक्षयः । शीर्षे तु मरणं विद्यात्पादे हानिर्महान्भवेत् ॥८९॥ घण्टाकारं लिखेच्चकं रविधिष्ण्यक्रमेण च । शुद्ध शुभे दिने चैव कृत्वा तां निशि विन्यसेत् ॥ ९॥शयीत दक्षिणे गेहे सुस्वप्नं
शुभदं भवेत् । मुखैक दिक्षु चत्वारि त्रीणि च गुदकण्ठयोः ॥९१ ॥ एवं चकं समालेख्यं प्रवेशार्थ सदा बुधैः। अग्निनाशो मुखे | प्रोक्त उद्धासः पूर्वतो भवेत् । दक्षिणे चार्थलाभश्च पश्चिमे श्रीप्रदो भवेत् ॥ ९२ ॥ पादमें भंग हो तो मूलका नाश होता है, अरणिमें हो तो धनका नाश होता है, शिरमें हो तो मरण जाने. पादमें छिद्र हो तो महान् हानि | होती है ।। ८९ ॥ घंटाके आकारका चक्र लिखे और उसपर सूर्यके नक्षत्रसे सब नक्षत्रोंको क्रमसे लिखे. शुद्ध शुभदिनमें उसे बनाकर रात्रिको रखकर ॥ ९. ॥ दक्षिणके घरमें शयन करे. यदि शयनके समयमें स्वप्न श्रेष्ठ हो तो सुखदायी होता है और मुखमें एक नक्षत्र और ) चारों दिशाओंमें चार २ गुदा और कण्ठमें तीन २ लिखे ॥ ९१ ॥ प्रवेशके लिये बुद्धिमान मनुष्य इस चक्रको भलीप्रकार लिखे मुखके,
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