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________________ -- वि. प्र. IV काकके समान महान मकर होय ॥ ७१॥ पाश बाधकका बन्ध होय तो मृत्य और जनोंसे विपत्ति होती है रुधिरका स्राव कृष्ण शव ( मुह ) ये दीखे तो दुर्गधवान होता है ॥ ७२ ॥ शुक्ल समान सुगन्ध चिकने छेद होय तो शुभ होता है अशुभ और शुभ जो छेद हैं वे १॥ शय्यामें शुभदाई होते हैं ॥७३॥ ईशान दिशा आदिमें प्रदक्षिणक्रमसे छेद होय तो श्रेष्ठ होता है. वामक्रमसे तीन दिशाओं में हो तो भूतका भय होता है ।। ७४ । एकवारकेही विशरण (छेदन ) में विकलता पादमें हो जाय तो शुभ होता है. दो विशरणोंसे पवनका तरना नहीं पाशे बाधकबन्धे वा मृत्युर्जनविपद्भवेत् । रक्तस्नुते च कृष्णे च शावे दुर्गन्धिवान्भवेत् ॥७२॥ शुक्कैः समैः सुगन्धैश्च निग्धैश्छेदः शुभावहः । अशुभा च शुभा ये च छेदास्ते शयने शुभाः॥ ७३ ॥ ईशादिगोप्रदक्षिण्यात्प्रशस्तमथवा तथा । अपसव्ये दिक्त्रये च भयं भवति भूतजम् ॥७४॥ एकेन वा विशरणे वैकल्यं पादतः शुभम् । द्वाभ्यां न तीर्यते वातं त्रिचतुः केशबन्धदौ ॥७॥ सुपिरे वा विवणे वा ग्रन्थौ पादे शरे तथा । व्याधिः कुम्भेऽथवा पादे ग्रन्थिवदनरोगदा ॥ ७६ ॥ कुम्भाद्यभागे जङ्घायां जङ्घा रोग तथा भवेत् । तस्याश्वाथो पदाधोवा द्रव्यनाशकरः परः ।। ७७॥ खुरदेशे यदा ग्रन्थिः खुराणां पीडनं भवेत् । राशिशीर्षत्रि | विभागसंस्थोऽपि न शुभप्रदः ॥ ७८॥ होता है तीन चार विशरण क्लेश और बन्धके दाता होते हैं ।। ७५ ॥ छिद्र वा विवर्ण दीखे वा ग्रन्थि वा शर पादमें दीखे तो व्याधि होती है. कुंभ वा पादमें ग्रंथि हो तो मुखरोगको देती है ।। ७६॥ कुंभके प्रथमभाग वा जंघामें छिद्र हो तो रोग होता है. उसके नीचे वा पादके नीचे| छिद्र हो तो परम रोग होता है ॥ ७७ ॥ सुरके स्थानमें ग्रंथि हो तो खुरोंमें पीडा होतो है यदि राशि ( ग्रंथि) शिरके तीन २ भागमें| - CH
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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