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________________ आम्र, उदुंबर ( गूलर ) वृक्ष, चन्दन और स्पंदन शुभ होते हैं. फलवाले वृक्षोंके जो पर्यक और आसन हैं वे विशेषकर फलके दाता होते हैं ॥ ६५ ॥ हाथी दांत सब योगों में शुभ फलके दाता कहे हैं और उत्तम चन्दनसे इनका अलंकार करवावे और हाथोंके दांतका जो मूल उसकी जो परिधि उतना विस्तार मुटाईका करे ॥ ६६ ॥ शय्याके जो फलक ( पट्टी ) के मूलमें और आसन कोणमें चिह्न होना चाहिये जो किरिचर (पीठकआदि ) हैं उनमें भी किंचित् २ चिह्न श्रेष्ठ होता है ॥ ६७ ॥ श्रीवृक्ष और वर्द्धमान वृक्ष इनको ध्वजा छत्र चामर बन गजदन्ताश्च सर्वेषां योगे शुभफलाः स्मृताः । प्रशस्तं चन्दनं तेन कार्योऽलङ्कार एतयोः । दन्तस्य मूलपरिधीव्यायतं प्रोद्य कल्प येत् ॥ ६६ ॥ शय्याफलकमूले तु चिह्नश्वासनकोणके । न्यूनङ्किरिचराणां तु किंचित्किञ्चित्प्रशस्यते ॥ ६७ ॥ श्रीवृक्षवर्द्धमानैश्व ध्वजं छत्र च चामरम् ! छेदे दृष्टे तु ह्यारोग्यं विजयं धनवृद्धिदम् || ६८ || प्रहरणाभे जयो ज्ञेयो नन्द्यावर्ते लभेन्महीम् । लोष्ठे तु लब्धपूर्वस्य देशस्याप्तिर्भविष्यति ॥ ६९ ॥ स्त्रीरूपे अर्थनाशः स्यादभृङ्गराजे सुतस्य च । लाभः कुम्भे निधिप्राप्तिर्यात्राविघ्नं च दण्डके ॥ ७० ॥ कृकलासभुजङ्गाभे दुर्भिक्षं वानरेण च । गृधोलूकश्येनकाकसदृशो मकरो महान् ॥ ७१ ॥ वावे. यदि उनमें छिद्र दृष्ट आवे तो आरोग्य विजय और धनकी वृद्धिको देता है ॥ ६८ ॥ यदि प्रहरण ( शस्त्र) के समान चिह्न हो तो जय जानना. नंद्यावर्त (गोल) होय तो स्वामीको पृथ्वीका लाभ होता है, लोष्ठके समान हो तो पहिले मिलेहुए देशकी प्राप्ति होती है। | ॥ ६९ ॥ स्त्रीका रूप दीखे तो अर्थका नाश होता है. भांगरा दीखनेसे पुत्रका लाभ होता है, कुंभके दीखने पर निधिकी प्राप्ति होती है और दंडक में यात्राका विघ्न होता है ॥ ७० ॥ कृकलास ( करकेटा) और भुजंगके समान वा वानर दीखे तो दुर्भिक्ष होता है, गीध उलूक श्येन ११
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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