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वि.प्र.
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भा. टी.
अ. १०
असनका वृक्ष रोगका हर्ता होता है तिंदुककी शय्या पित्तको करती है, चन्दनकी शय्या शत्रुको नष्ट करती है और धर्म आयु यशको देती है ॥ ६० ॥ शिंशपावृक्षसे उत्पन्न हुई शय्या महान् समृद्धिको करती है पद्मकका जो पर्यक ( पलंग) है वह दीर्घ अवस्था लक्ष्मी पुत्र अनेक प्रकारका धन और शत्रुओंका नाश इन सबको करता है ॥ ६१ ॥ शाल कल्याणका दाता कहा है. शाक और सूर्यके वृक्षसे केवल चन्दनसे निर्मित पर्यङ्क जो रत्नोंसे जटित हो और जिसका मध्यभाग सुवर्णसे गुप्त हो अर्थात् सुवर्णसे मढा हो उस पर्यककी देवता भी पूजा करते हैं असनो रोगहर्ता च पित्तकृत्तिन्दुकोद्भवः । रिपुहा चन्दनमयो धर्मार्युयशदायकः ॥ ६० ॥ शिंशपावृक्षसम्भूतः समृद्धि कुरुते महान् । यस्तु पद्मकपर्यको दीर्घमायुः श्रियं सुतम् । वित्तं बहुविध धत्ते शत्रुनाशं तथैव च ॥ ६१ ॥ शालः कल्याणदः प्रोक्तः शाकेन रचितस्तथा । केवलं चन्दनेनैव निर्मितं रत्नचित्रितम् । सुवर्णगुप्तमध्यासं पर्यकं पूज्यते सुरैः ॥ ६२ ॥ अनेनैव समायुक्ता शिशपा तिन्दुकीति च । शुभासनं तथा देवदारु श्रीपर्णिनापि वा ॥ शुभदौ शाकशालौ तु परस्परयुतौ पृथक् ॥ ६३ ॥ तद्वत्पृथक् प्रशस्तौ हि कदंबक दरिद्रको । सर्वकाष्ठेन रचितो न शुभः परिकल्पितः ॥ अम्रेण वा प्राणहरश्वासनो दोषदायकः ॥ ६४ ॥ अन्येन सहितो ह्येष करोति धनसंक्षयम् । आम्रोदुंबर वृक्षाणां चन्दनस्पन्दनाः शुभाः फलिनां तु विशेषेण फलदं शयनासनम् ६५ ॥ ६२ ॥ इसके ही समान शिंशपा और निन्दुककी कही है. शुभासन देवदारु और श्रीपण ये पूर्वोक्तकेही समान होते हैं. शाक और शाल ॥ ८० ॥ || शुभदायी होते हैं ॥ ६३ ॥ तिसी प्रकार कदम्ब और हरिद्रक ( हलद) ये भी पृथक २ श्रेष्ठ होते हैं. सब काष्ठोंसे रचित पर्यक शुभ नहीं कहा है. आम्रकी शय्या प्राणोंको हरती है और असून दोषोंको देता है ॥ ६४ ॥ अन्यकाष्ठसे सहित असन वृक्ष धनके संक्षयको करता है।