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विप्र छठे स्थानमें मंगल हो इस योगमें जो घरका प्रवेश हो यह शत्रुओंका नाशकर्ता होता है ॥ ३७॥ गुरु और शुक्र चौथे भवनमें हों मंगला
और सूर्य लाभ ११ स्थानमें हो इस योगमें जिसका प्रवेश होता है वह घर भूति (धन) का दाता होता है ॥ ३८ ॥ गुरु बुध चन्द्रमा शुक्र se इ नमेस एक भी ग्रह अपने उच्चका होकर मुख ४ में वा दशमभवनमें स्थित हो वा लग्नमें हो तो वह घर सुखका दाता होता है अष्टमस्थानमें|
चन्द्रमा होय तो चाहे सौभी उत्तम योग हों ॥ ३९॥ तोभी वे इस प्रकार निष्फल जानने जैसे वज्र (बिजली)से हतहुए वृक्ष, यदि क्षीण गुरुशुक्रौ च हिबुके लाभगौ कुजभास्करी । प्रवेशो यस्य भवति तद्गृहं भूतिदायकम् ॥ ३८॥ एकोऽपि जीवज्ञशशिसितानां स्वोच्चगः सुखे । स्वमे वा तदगृहं सौख्यदायकं लग्नगेऽपि वा।।अष्टमस्थे निशानाथे यदि योगशतैरपि ॥३९॥ तदा ते निष्फला ज्ञेया वृक्षा वज्रहता इव । क्षीणचन्द्रोऽन्त्यषष्ठाष्टसंस्थितो लग्नतस्तथा ॥ भार्याविनाशनं वर्षात्सौम्ययुक्ते त्रिवर्षतः ॥ १० ॥ जन्मभादष्टमं स्थानं लग्नादाथ तदंशकम् । त्यजेच्च सर्वकर्माणि दुर्लभं यदि जीवितम् ॥४१॥ प्रवेशलग्रानिधने यः कश्चित् पापखेचरः। क्रूरक्षे इन्ति वर्षा च्छुभः वाष्टवत्सरात् ॥ ४२ ॥ रन्ध्रात्पुत्राद्धनादायात्पञ्चस्व स्थिते क्रमात् । पूर्वाशादि मुखं गेहाद्विशेदामो भवेद्यतः । गुरुदेवानिगोविप्र ऊर्द्धपादैर्द्धनक्षयम् ॥४३॥ चन्द्रमा बारहवें छठे आठवें भवनमें हो वा लग्नमें होय तो एक वर्ष भार्याका नाश होता है और सौम्यग्रहसे युक्त लग्न होय तो तीन वर्षमें भार्याका नाश होता है॥४०॥ जन्मके लग्नराशिसे आठवां स्थान और जन्मलग्नसे आठवां नवांशक इनमें सब कौंको त्यागदे. कर्म करे का तो जीवन दुर्लभ होता है॥४१॥ प्रवेशके लग्नसे अष्टम स्थानमें यदि कोईभी पापग्रह पडा हो यदि वह कर राशिपर हो तो छ: मासमें Nऔर शुभ राशिपर होय तो आठ वर्षमें स्वामीका नाश करता है॥ ४२ ॥ रन्ध्र १० पुत्र ५ धन ९ आय ११ इनसे पंचम भवनमें सूर्य