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________________ जो तीनप्रकारके उत्पातोंसे दूषित हो वह नक्षत्र प्रवेश में श्रेष्ठ नहीं होता ॥ ३१ ॥ जो नक्षत्र लतासे निहन हो और जो क्रांति साम्यसे दूषित हो और ग्रहणसे दूषित यह तीन प्रकारका प्रवेशमें त्याज्य है ॥ ३२ ॥ जो चन्द्रमाने भोगा हो वह भी श्रेष्ठ नहीं है और जन्मके नक्षत्रसे दशवां और युद्धका नक्षत्र और सोलहवां नक्षत्र ॥ ३३ ॥ अठारहवां समुदायका तेईस नक्षत्र विनाशक होते हैं मानस नामक पच्चीसai इनमें शोभन कर्मको न करे || ३४ ॥ अपने उच्चस्थानका गुरु लग्नमें हो अथवा शुक्र वेश्मभवनमें हो ऐसे लग्न में "लत्तया निहतं यच्च कान्तिसाम्येन दूषितम् । प्रवेशे त्रिविधे त्याज्यं ग्रहणेनाभिदूषितम् ॥ ३२ ॥ यावञ्चन्द्रेण भुक्तं तदृक्षे नैव तु शोभनम् । जन्मभाद्दशमं कर्मसांघात तु पोडशम् ॥ ३३ ॥ अष्टादशं सामुदायं त्रयोविंशं विनाशकम् । मानसं पञ्चविं शाख्यं नाचरेदेषु शोभनम् ॥ ३४ ॥ स्वोचसंस्थे गुरौ लग्ने शुके वा वेश्मसंस्थिन । यस्यात्र वेशो भवति तद्गृहं सौख्यसंयुतम् ॥ ३५ ॥ स्वोच्चस्थलग्नगे सूर्ये चतुर्थे देवपूजिते । यस्थात्र योगो भवति संपदाढ्यं गृहं भवेत् । गुरौ लग्नेऽस्तगे शुके पष्ठेऽर्के लाभगे शनौ || ३६ || प्रवेशकाले यस्यायं योगः शत्रुविनाशदः । लग्ने शुक्रे सुखे जीवे लाभेऽर्के रिपुगे कुजे ॥ वेश्मप्रवेशो योगेऽस्मिन् शत्रुनाशकरः परः ॥ ३७ ॥ जिसका प्रवेश होता है वह घर सुखसे युक्त रहता है ।। ३५ ।। अपने उच्चका सूर्य लग्नमें हो चौथे भवनमें गुरु हो जिसका ऐसे लनमें योग (मिलना वा प्रवेश) होता है वह घर संपदाओंसे युक्त रहता है और गुरु लग्नमें हो और शुक्र अस्त हो छठे स्थान में सूर्य हो लाभमें शनि हो ॥ ३६ ॥ यह योग जिसके प्रवेशकालमें हो वह घर शत्रुओं के नाशको देता है लप्रमें शुक्र हो चौथे भवन में गुरु हो लाभमें सूर्य हो
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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