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________________ वि. प्र. ॥ ७५ ॥ और तरुण जिस वाणीको कहते हैं वह उसी प्रकार सत्य होती है रज्जूके छेदन और यन्त्रके भेदमें बालकोंको पीडा होती हैं ॥ ४७ ॥ यह वृक्षच्छेदन की विधि मैंने कही. काष्ठके छेदनकर्ममें भी शकुनकी परीक्षा ले ॥ ४८ ॥ इतेि पं० मिहिरचन्द्रकृतभाषाविवृतिसहिते वास्तुशास्त्रे वृक्षच्छेदनविधिर्नाम नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥ अब नवीनमन्दिरके प्रवेशका वर्णन करते हैं- उत्तरायण सूर्य, बृहस्पति और शुकके बलवान् होने पर ज्येष्ठ माघ फाल्गुन वैशाख मार्गशिरमें गृहका प्रवेश श्रेष्ठ होता है और आषाढ़ में मध्यमफलको देता है माघमें प्रथम प्रवेश होय तो यद्वा वाचं कथयन्ति तत्तथैव भविष्यति । रज्जुच्छेदे बालपीडा यन्त्रभेद तथैव च ॥ ४७ ॥ इति प्रोक्तं मया वृक्षच्छेदनार्थे विधानतः । शकुनानि परीक्षत दारुच्छेदनकर्मणि ॥ ४८ ॥ इति वास्तुशास्त्रे वृक्षच्छेदनविधिर्नाम नवमोऽध्यायः ॥ ९ ॥ अथ प्रवशो नवमन्दिरस्य सौम्यायने जीवसित बलाढये । स्याद्वेशनं ज्येष्टतपोऽन्त्यमाधवे मार्गे शुचौ मध्यफलप्रदं स्यात् ॥ माघे लाभः प्रथमप्रवेशे पुत्रार्थलाभः खलु फाल्गुने च ॥ १ ॥ चैत्रेऽर्थहानिर्धनधान्यलाभो वैशाखमासे पशुपुत्रलाभः । ज्येष्ठे च मार्गे च शुचौ च मासे मध्यः प्रदिष्टः प्रथमप्रवेशः । यात्रानिवृत्तौ मनुजाधिपानां वास्त्वर्चनं भूतबलिं च पूर्वे ॥ २ ॥ दिने प्रदद्यादथ दिक्रमेण मांसं सृक्वाज्ययुतं चतुर्षु ॥ ये भूतानीतिमन्त्रेण चतुर्दिक्षु बलिं हरेत् ॥ ३ ॥ धनका लाभ होता है फाल्गुनमें पुत्र और धनका लाभ ॥ १ ॥ चैत्र में धनकी हानि और वैशाखमें धन धान्य पशुपुत्रका लाभ होता है ज्येष्ठ मार्गशिर आषाढ मासों में प्रथमप्रवेश मध्यम कहा है राजाओंकी यात्रा - निवृत्ति होनेपर प्रथम वास्तुपूजा और भूतबलिको करे ॥ २ ॥ वह बलि | प्रवेशके दिनसे प्रथम दिन करे फिर दिशाओंके क्रमसे मांस और घृतसहित असृक्की बलि चारों कोनोंमें दे और 'ये भूतानि ' इस मंत्र से चारों भा. टी. अ. १७ ॥ ७५ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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