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________________ भागका दुःखदायी होता है और चार छः भागके बन्धनको जाने और पाँचभागमें मृत्युको कहे ॥ ४० ॥ जर्जर ( जीर्ण ) में धनका नाश होता है मध्यमें छिद्र रोगदायक होता है निष्फल वृक्षका घर निष्फल होता है और सफलसे सफल होता है ॥ ४१ ॥ विरूप ( बदसूरत ) से धनका नाश होता है सक्षत (घुना) से रोग होता है अंगहीनसे दूधका नाश और विकट वृक्ष कन्याओंका जन्म होता है ॥ ४२ ॥ | यदि काष्ठको पक्षभर जलमें पडा रक्खै तो कीट भक्षण कदाचित् न करे कृष्णपक्षमें छेदन करें बुद्धिमान मनुष्य शुक्लपक्षमें कदाचित् न करै जर्जरे धननाशः स्यान्मध्ये छिद्रं गदप्रदम् । निष्फलेलं निष्फलं गेहूं सफले फलमेव च ॥ ४१ ॥ विरूपे धननाशः स्यात् सक्षने रोगमेव च । हीनाङ्गे क्षीरनाश च विकटे कन्यकोद्भवम् ॥४२॥ काष्ठं नो भुज्यते कीयदि पक्ष धृतं जले। कृष्णपक्षे छेदनं च न शुक्कु कारयेद्बुधः ॥ ४३ ॥ उद्धृत्य काष्ठं शकटैर्मनुष्यैर्वा समन्ततः । वैन्यानाशे तस्य नाशः आरभङ्गे वलक्षयः ॥ ४४ ॥ अर्थक्षयोऽक्षभेदे च तथा भङ्गे च वर्धके । विजयाय भवेच्छ्रेतः पीतो रोगप्रदो मतः ॥ ४५ ॥ जयदचित्ररूपश्च रक्तैः शस्त्राद्भयं भवेत् । प्रवेशे चैव दारूणां बालकाश्चापि तारुणाः ॥ ४६ ॥ ॥ ४३ ॥ शकटोंसे वा मनुष्योंसे चारों तरफ के काष्ठको इकट्ठा करके वैन्या ( वेणी) के नाशमें अर्थात् शकटकी फडके टूट जानेपर स्वामीका नाश होता है आरोंके भंगमें बलका नाश कहा है ॥ ४४ ॥ अक्ष ( पहियों) के भेदनसे धनका नाश होता है और वर्धक ( रस्सी ) के भंगमें भी धनकी हानि होती है. श्वेतकाष्ठ विजयकारी होता है और पीत रोगका दाता माना है ॥ ४५ ॥ चित्ररूपका काष्ठ जयका दाता होता है रक्तकाष्ठके लगानेसे शस्त्रसे भय होता है और काष्टके प्रवेशमें रक्त वस्त्रधारण किये हुए बालक ॥ ४६ ॥
SR No.034186
Book TitleVishvakarmaprakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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