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कन्या धन मीन इनके सूर्यमें द्वारको न बनवाने ॥९॥ द्वारका स्तंभ और काष्ठका संचय इनकोभी विशेषकर वर्ज दे । माघमें और सिंहमें काष्ठके छेदनको न करवावे, जो मूढ मोहसे करते हैं उनके घरमें अग्निका भय होता है ॥ १० ॥ अब पञ्चम प्रकारको कहते हैं-पूर्णिमासे | अष्टमतिक पूर्व मुखके द्वारको वर्जदे, नवमीसे चतुर्दशीपर्यन्त उत्तरमुखके द्वारको वर्जदे ॥ ११ ॥ अब छठे प्रकारको कहते हैं ब्राह्मणोंके घरका द्वार पश्चिममुखका, क्षत्रियोंके उत्तरमुखका, वैश्यांके पूर्वमुखका, शूद्रोंका दक्षिणमुखका शुभ होता है ॥ १२ ॥ अब सातवें प्रकारको कहते द्वारस्तंभौ तथा दारुसञ्चयं च विवर्जयेत् । माघे सिंहे च दारूणां छेदनं नैव कारयेत् । मोहात्कुर्वन्ति ये मूढास्तद्वदेऽग्निभय भवेत् ॥ १०॥ अथ पञ्चमः॥ पूर्णादि त्वष्टमी यावत्पूर्वास्यं परिवर्जयेत् । उत्तरास्यं न कुर्वीत नवम्यादिचतुर्दशी ॥ ११ ॥ अथ षष्ठः ॥ प्रत्यङ्मुखं ब्राह्मणानां क्षत्रियाणां तथोत्तरे । वैश्यानां पूर्वदिग्द्वारं शूद्राणां दक्षिण शुभम् ॥ १२ ॥ अथ सप्तमः ॥ कर्कटो वृश्चिको मीनो ब्राह्मणः परिकीर्तितः । मेषः सिंहो धनुर्धारी राशयः क्षत्रिया स्मृताः । वैश्या वृषमृगौ कन्या शूद्राः शेषाः प्रकीर्तिताः॥१३॥ वर्णक्रमेण पूर्वा दिग दक्षिण पश्चिमे तथा ॥ १४ ॥ यो यस्य राशिर्मय॑स्य तस्य द्वारं ततश्चरेत् । दिशि
तद्विपरीतं तु कर्तुष्टफलं भवेत ॥ १५॥ वाह-कर्क वृश्चिक मीन ये राशि ब्राह्मण कहाती हैं, मेष सिंह धनु ये राशि क्षत्रिय कहाती हैं । १३ ।। वृष मृग कन्या ये.राशि वैश्य कहाती हैं।
और शेष राशि शुद्र कहातीं हैं. वर्णके क्रमसे पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तरदिशाओंके द्वार होते हैं ॥ १४॥ जिस मनुष्पकी जो राशि हो उसीसे उसका द्वार बनवावे, उसके विपरीत दिशामें द्वार बनवानेसे कर्ताको इष्टफल नहीं होता ॥ १५ ॥